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________________ .. . . . . २०९. साधु-साध्वी कई शब्दों को सुनते हैं, उनके सम्बन्ध में आवश्यकता होने पर बोलना हो तो सुशब्द को ‘यह सुशब्द है' और दुःशब्द को 'यह दुःशब्द है' इस प्रकार की निरवद्य यावत् जीव-हिंसारहित भाषा बोले। इसी प्रकार रूपादि के विषय में-कृष्ण को कृष्ण यावत् श्वेत को श्वेत कहे। गन्धादि के विषय में सुगन्ध को सुगन्ध और दुर्गन्ध को दुर्गन्ध, रसादि के विषय में भी (तटस्थ भावपूर्वक) तिक्त को तिक्त यावत् मधुर को मधुर कहे, स्पर्शादि के विषय में कर्कश यावत् उष्ण को उष्ण कहना चाहिए। 209. On hearing (if an occasion to speak about them arises) aforesaid words and sounds—good words or sounds should be called good and bad words or sounds should be called bad. They should thoughtfully utter such sinless and benign language. The same rule applies to form-black should be called black and white should be called white; smell—fragrance should be called fragrance and stench should be called stench; taste—bitter should be called bitter and sweet should be called sweet; and touch-rough should be called rough and smooth should be called smooth. विवेचन-शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श, इन पंचेन्द्रिय विषयों के सम्बन्ध में क्या और कैसी भाषा बोलनी चाहिए यह विवेक इन दो सूत्रों में बताया गया है। ___स्थानांगसूत्र में पाँचों इन्द्रियों के २३ विषय और २४0 विकार बताए गये हैं, वे इस प्रकार हैं १. श्रोत्रेन्द्रिय के ३ विषय-(१) जीव शब्द, (२) अजीव शब्द, (३) मिश्र शब्द तथा १२ विकार-तीन प्रकार के शब्द, शुभ और अशुभ (३४२=६), इन पर राग और द्वेष (६४ २ = १२)। २. चक्षुरिन्द्रिय के ५ विषय-(१) काला, (२) नीला, (३) लाल, (४) पीला, (५) सफेद वर्ण तथा ६० विकार-काला आदि ५ विषयों के सचित्त, अचित्त, मिश्र ये तीन-तीन प्रकार। इन १५ के शुभ और अशुभ दो-दो प्रकार, और इन ३० पर राग और द्वेष, यों कुल मिलाकर साठ हुए। ३. घ्राणेन्द्रिय के दो विषय-(१) सुगन्ध, और (२) दुर्गन्ध तथा १२ विकार-दो विषयों के सचित्त, अचित्त, मिश्र ये तीन-तीन प्रकार, फिर ६ पर राग-द्वेष होने से १२ हुए। ४. रसनेन्द्रिय के ५ विषय-(१) तिक्त, (२) कटु, (३) कषैला, (४) खट्टा, और (५) मधुर रस तथा ६० विकार-चक्षुरिन्द्रिय की तरह उसके पाँचों विषयों को समझें। ५. स्पर्शेन्द्रिय के आठ विषय-(१) कर्कश (खुर्दरा), (२) मृदु, (३) लघु, (४) गुरु, (५) स्निग्ध, (६) रूक्ष, (७) शीत, और (८) उष्ण स्पर्श, तथा ९६ विकार-८ विषय, सचित्त, अचित्त, मिश्र तीन-तीन प्रकार के होने से २४। इनके शुभ-अशुभ दो-दो भेद होने से ४८ पर राग भाषाजात : चतुर्थ अध्ययन ( 303 ) Bhashajata : Fourth Chapter ROO Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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