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गोली ! (जितने सम्बोधन पुरुष के लिए दिये गये हैं, उन्हें स्त्रीलिंग वचन में समझना चाहिए, जैसे-अरी वृषली शूद्रे ! हे कुपक्षे ! हे घटदासी ! ऐ कुत्ती ! अरी चोरटी ! हे गुप्तचरी ! अरी मायाविनी ! अरी झूठी ! ऐसी ही तू है और ऐसे ही तेरे माता-पिता हैं !)" विचारशील साधु-साध्वी इस प्रकार की सावद्य यावत् जीवोपघातिनी भाषा नहीं बोले।
188. When he does not get a response on calling some female, a bhikshu or bhikshuni should not, out of irritation, say-“You hussy ! You wench !. . . (repeat the aforesaid list of abusive terms adapted for females).” A disciplined ascetic should avoid such sinful (etc. up to violent to beings) speech.
१८९. से भिक्खू वा २ इत्थिं आमंतेमाणे आमंतिए य अपडिसुणेमाणीं एवं वदेज्जा-आउसो ति वा, भगिणी ति वा, भोई ति वा, भगवइ ति वा, साविगे ति वा, उवासिए ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मप्पिए ति वा। एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभिकंख भासेज्जा।
१८९. भिक्षु द्वारा महिला को आमन्त्रित करने पर भी यदि वह न सुने तो उसे इस प्रकार सम्बोधित करे-“आयुष्मती ! बहन (भगिनी) ! भवती, भगवति ! श्राविके ! उपासिके ! धार्मिके ! धर्मप्रिये !'' इस प्रकार की निरवद्य यावत् कोमल मधुर भाषा विचारपूर्वक बोले। ____189. When he does not get a response on calling some female,
a bhikshu or bhikshuni should say—“O lady.... ! O long lived ___one ! O long lived ones ! O lay-woman ! O devotee ! O religious one ! O devout one !” A disciplined ascetic should thoughtfully use such speech that is not sinful (etc. up to violent to beings).
विवेचन-'पुव्वं भासा अभासा'' इत्यादि पाठ की व्याख्या वृत्तिकार ने इस प्रकार की हैभाषावर्गणा के पुद्गल वाक् योग से, मुख से निकलने से पूर्व भाषा नहीं कहलाते, बल्कि अभाषा रूप ही होते हैं, भाषावर्गणा के पुद्गल जब वाक् योग से निकल रहे हों, तभी वह भाषा कहलाती है। बोलने का समय बीत जाने पर शब्दों का प्रध्वंश हो जाने से बोली गई भाषा अभाषा हो जाती है। इसका अर्थ है-जो भाषा बोली नहीं गई है या बोली जाने पर भी नष्ट हो चुकी, वह भाषा की संज्ञा प्राप्त नहीं करेगी, वर्तमान में प्रयुक्त भाषा ही 'भाषा संज्ञा' प्राप्त करती है। (वृत्ति पत्रांक ३८७)
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आचारांग सूत्र (भाग २)
( २८८ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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