SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ENNAPAAMRAAAAAAAAA A AAA1NMENitinRINAMAMD. 3) भासज्जाया : चठत्थं अज्झयणं भाषाजात : चतुर्थ अध्ययन BHASHAJATA : FOURTH CHAPTER PROPER LANGUAGE पढमो उद्देसओ प्रथम उद्देशक LESSON ONE '' +AHANA भाषा-सम्बन्धी विवेक १८०. से भिक्खू वा २ इमाइं वय-आयाराई सोच्चा णिसम्म इमाइं अणायाराई अणायरियपुव्वाइं जाणेज्जा-जे कोहा वा वायं विउंजंति, जे माणा वा वायं विउंजंति, जे मायाए वा वायं विउंजंति, जे लोभा वा वायं विउंजंति, जाणओ वा फरुसं वयंति, a अजाणओ वा फरुसं वयंति। सव्वं चेयं सावज्जं वज्जिज्जा विवेगमायाए। धुवं चेयं जाणेज्जा, अधुवं चेयं जाणेज्जा। असणं वा ४ लभिय, णो लभिय, भुंजिय, णो भुंजिय अदुवा आगओ, अदुवा णो आगओ, अदुवा एइ, अदुवा णो एइ, अदुवा एहिइ, अदुवा णो एहिइ, एत्थ वि आगए, एत्थ वि णो आगए, एत्थ वि एति, एत्थ वि णो एति, एत्थ वि एहिति, एत्थ वि णो एहिति। १८०. साधु या साध्वी-वचन सम्बन्धी इन आचारों को सुनकर, हृदयंगम करके, भाषा-सम्बन्धी अनाचारों (जो पूर्व मुनियों द्वारा आचरित नहीं हैं) को जानने का प्रयत्न करे। जो क्रोध से वाणी का प्रयोग करते हैं, इसी प्रकार अभिमानपूर्वक एवं छल-कपट सहित भाषा बोलते हैं अथवा लोभ के वशीभूत होकर वचन बोलते हैं, जानबूझकर (किसी के दोषों को जानते हुए) कठोर वचन बोलते हैं अथवा अनजाने में कठोर वचन बोल देते हैं-इस प्रकार की सब भाषाएँ सावध हैं, जो साधु के लिए वर्जनीय हैं। साधु इस प्रकार की सावद्य एवं अनाचरणीय भाषाओं का विवेकपूर्वक त्याग करे। __वह साधु या साध्वी ध्रुव (भविष्य के विषय में निश्चयात्मक) भाषा को जानकर उसका त्याग कर दे। अध्रुव (अनिश्चयात्मक) भाषा को भी जानकर उसको छोड़े। (कोई - साधु आहार के लिए गया हो तो ऐसा न कहे-) “वह अशनादि आहार लेकर ही आयेगा, या आहार लिए बिना ही आयेगा। वह आहार करके ही आयेगा या आहार बिना किये ही आ जायेगा। वह अवश्य आया था या नहीं आया था। वह आता है अथवा नहीं आता है। भाषाजात : चतुर्थ अध्ययन (२७९ ) Bhashajata : Fourth Chapter र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy