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STORY
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and throw it away, the ascetic should not go into the village and report to the villagers. He should neither lodge a complaint to the king nor go and tell some householder—“Long lived householder ! Those bandits have beaten me and deprived me of my belongings or damaged my equipment and thrown them away.” An ascetic should neither have such thoughts nor utter them. Being free of attachment he should compose himself and move about.
This is the totality (of conduct including that related to knowledge) for that bhikshu or bhikshuni.
-So I say. विवेचन-इन छह सूत्रों में विहार मार्ग में होने वाले उपद्रवों की चर्चा की गई है। प्राचीन काल में यातायात के साधन सुलभ न होने से अनुयायी लोगों को साधु के विहार की कुछ भी जानकारी नहीं मिल पाती थी। विहार बड़े कष्टप्रद होते थे। रास्ते में हिंस्र पशुओं का तथा चोर-डाकुओं का बड़ा भय बना रहता था, बड़ी भयानक लम्बी-लम्बी अटवियाँ होती थीं, ऐसी विकट परिस्थिति में साधु की निर्भयता और अनासक्ति की पूरी कसौटी हो जाती थी। ___ मार्ग में चोर उसके वस्त्रादि छीन ले या उसे मारे-पीटे तो भी न तो चोरों के प्रति प्रतिशोध की भावना रखे, न उनसे दीनतापूर्वक वापस देने की याचना करे और न कहीं उसकी फरियाद करे, अपितु शान्ति से, समाधिपूर्वक उस उपसर्ग को सहन करे।
बृहत्कल्पसूत्र के भाष्य तथा निशीथ चूर्णिकार आदि के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि उस युग में श्रमणों को इस प्रकार के उपद्रवों का काफी सामना करना पड़ता था। कभी बोटिक चोर (म्लेच्छ) किसी आचार्य या गच्छ का वध कर डालते, संयमियों का अपहरण कर ले जाते तथा उनकी सामग्री नष्ट कर डालते-(निशीथ चूर्णि, पीठिका २८९) इस प्रकार के प्रसंग उपस्थित होने पर अपने आचार्य की रक्षा के लिए कोई वयोवृद्ध साधुगण का नेता बन जाता और गण का आचार्य सामान्य भिक्षु का वेश धारण कर लेता-(बृहत्कल्पभाष्य १/३००५-६ तथा निशीथभाष्य, पीठिका ३२१) कभी ऐसा भी होता कि आक्रान्तिक चोर चुराये हुए वस्त्र को दिन में ही साधुओं को वापस कर जाते किन्तु अनाक्रान्तिक चोर रात्रि के समय उपाश्रय के बाहर प्रनवण भूमि में डालकर भाग जाते। (बृहत्कल्पभाष्य १/३०११)
॥ तृतीय उद्देशक समाप्त ॥ ॥ तृतीय अध्ययन समाप्त ॥
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9480948445
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* ईर्या : तृतीय अध्ययन
( २७५ ) HAMARTHoCrorever
Irya : Third Chapter
Dosto
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