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यावत् राजधानी का मार्ग अब कितना शेष रहा है ?" साधु इन प्रश्नों के उत्तर में भी मौन धारण करके रहे।
175. While wandering from one village to another, when a bhikshu or bhikshuni is approached by a traveller and asked“Long lived Shraman ! How far is the village or city from this place ? or how much distance remains to be covered to reach the village or city ?" At this the ascetic should ignore them silently and resume his wandering.
विवेचन-सत्र १७१-१७२ इन दो सत्रों में मार्ग में मिलने वाले प्रातिपथिकों (यात्रियों) द्वारा पशु-पक्षियों और वनस्पति, जल एवं अग्नि के विषय में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देने का निषेध किया गया है। क्योंकि बहुत सम्भव है कि मनुष्य एवं पशु-पक्षी आदि के विषय में प्रश्न करने वाला या तो शिकारी हो या वधिक, बहेलिया, कसाई या लुटेरा आदि में से कोई हो सकता है। साधु द्वारा बताने पर वह उसी दिशा में जाकर उस जीव को पकड़ सकता है या उसकी हत्या कर सकता है;
और इस. हत्या में अहिंसा-महाव्रती साधु निमित्त बन सकता है। दूसरे सूत्रों में ऐसे असंयमी, भूखे-प्यासे, शीत-पीड़ित, लोगों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न हैं, जो साधु के बता देने पर उन जीवों की विराधना व आरम्भ-समारम्भ कर सकते हैं। अतः दोनों प्रकार के प्रश्नों में ऐसा न कहे कि मैं जानता हूँ-"जाणं वा नो जाणं ति वएज्जा।" किन्तु जानता हुआ भी मौन धारण करके रहे। ऐसी स्थिति में जिनकल्पिक मुनि तो मौन रहकर अपने प्राणों को न्यौछावर करने में तनिक भी नहीं हिचकते, लेकिन स्थविरकल्पी मुनि के सम्बन्ध में दो विचारधाराएँ विकल्प रूप में प्रचलित हैं। __ पहली यह कि साधु को ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए जिससे अनेक प्राणियों की हिंसा होती हो और साथ ही सत्य महाव्रत धारक साधु को किसी भी परिस्थिति में असत्य भाषण नहीं करना चाहिए। अतः जानता हुआ भी वह ऐसा नहीं कहे कि "मैं जानता हूँ।" ऐसा मौन धारण करने पर ही सम्भव है। इस मत का समर्थन आचार्य श्री आत्माराम जी म. करते हैं तथा इसके पक्ष में उन्होंने उपाध्याय श्री पार्श्वचन्द्र जी म. कृत बालावबोध को उद्धृत किया है। __दूसरा पक्ष है वृत्तिकार का। उन्होंने जीवदया की भावना को अधिक महत्त्व देते हुए कहा है“यदि ऐसी विकट परिस्थिति हो तो साधु जानता हुआ भी यह कहे कि “मैं नहीं जानता।" स्व. आचार्य श्री जवाहरलाल जी म. ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'सद्धर्म मण्डन' में वृत्तिकार के कथन का समर्थन किया है कि यहाँ साधु की भावना असत्य बोलने की नहीं है अपितु जीवों की रक्षा करने की है। ____ आचार्य श्री आत्माराम जी म. स्पष्ट रूप में लिखते हैं-"जानते हुए यह भी नहीं कहना चाहिए कि मैं जानता हूँ और झूठ भी नहीं बोलना चाहिए अतः मौन ही रहना चाहिए।" (हिन्दी टीका, पृ. ११२८)
आचारांग सूत्र (भाग २)
(२७० )
Acharanga Sutra (Part 2)
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