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________________ | पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन | आमुख + आचारांगसूत्र के इस द्वितीय श्रुतस्कंध का दूसरा नाम 'आचाराग्र' या 'आचार चूला' भी है। यह सम्पूर्ण ४ चूला तथा १६ अध्ययनों में निबद्ध है। + चूला, चूडा या चोटी शीर्ष स्थान को कहते हैं। इसमें श्रमण के आचार सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण विषयों का निर्देश होने से इसे 'चूला' संज्ञा दी गयी है। + आचार पाँच प्रकार का है-ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार। इस श्रुतस्कंध में मुख्य रूप में ‘चारित्राचार' का ही वर्णन है। मध्यवर्ती होने से चारित्राचार बाकी चारों आचार का रक्षक है। + प्रथम चूला में पिण्डैषणा से अवग्रह-प्रतिमा तक के सात अध्ययन हैं। द्वितीय चूला में स्थान सप्तिका आदि (अध्ययन ८ से १४) है। तृतीय चूला में भावना (१५वाँ) अध्ययन एवं चतुर्थ चूला में विमुक्ति (१६वाँ) अध्ययन वर्णित है। 2 + पिण्ड का अर्थ है-पदार्थों का समूह या संघात। द्रव्य-भाव से इसके दो भेद हैं। भाव पिण्ड का अर्थ है-संयम। द्रव्य पिण्ड का अर्थ है-भोजन। आहार, शय्या तथा उपधि (वस्त्र-पात्र) ये तीनों द्रव्य पिण्ड हैं। + संयम साधना में शरीर मुख्य सहायक है। शरीर निर्वाह के लिए आहार आवश्यक है। शुद्ध, निर्दोष, संयम साधना के लिए शुद्ध आहार की एषणा करना यह प्रथम अध्ययन का विषय है। आहार-शुद्धि के लिए की जाने वाली गवैषणैषणा-(शुद्धाशुद्धि-विवेक), ग्रहणैषणा-(ग्रहण विधि का विवेक) और ग्रासैषणा-(परिभोगैषणा-भोजन-विधि का विवेक)। तीनों मिलकर पिण्डैषणा कहलाती हैं। पिण्डैषणा में आहार-शुद्धि (पिण्ड) से सम्बन्धित उद्गम, उत्पादना, एषणा, संयोजना, प्रमाण, अंगार, धूम और कारण; यों आठ प्रकार की पिण्ड-विशुद्धि (एषणा) का वर्णन है। * पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन Pindesana: Frist Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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