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में विहार के योग्य अन्य जनपदों के होते उन स्थानों में विहार करने का विचार नहीं करे। . केवली भगवान ने कहा है-ऐसे प्रदेशों में जाना कर्मबन्ध का कारण है।
(क्योंकि) वे अज्ञानीजन साधु के प्रति शंका कर सकते हैं कि “यह चोर है" आदि सूत्र १३४ के अनुसार समझें। अतः साधु को इन प्रदेशों में विहार नहीं करना चाहिए।
135. An itinerant bhikshu or bhikshuni should find if on his way there is an anarchy or a disturbed republic or a state ruled by a minor prince or a state ruled by two kings or a kingdom with a dispute between ruler and the ruled. If it is so he should not even think of taking that path if other suitable areas are available. The omniscient has said that going there is the cause of bondage of karmas.
(This is because) When those ignorant uncivilized people see ascetics they will utter harsh words—"He is a thief".... (same as aphorism 134)..... they should avoid such areas during there wanderings.
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विहारपथ में विकट अटवी
१३६. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से विहं सिया, से जं पुण , विहं जाणेज्जा एगाहेण वा दुयाहेण वा तियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा पाउणिज्जा वा णो वा पाउणिज्जा। तहप्पगारं विहं अणेगाहगमणिज्जं सति लाढे जाव । गमणाए। केवली बूया-आयाणमेयं। अंतरा से वासे सिया पाणेसु वा पणएसु वा बीयेसु वा हरिएसु वा उदएसु वा मट्टियाए वा अविद्धत्थाए। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं , तहप्पगारं विहं अणेगाहगमणिज्जं जाव णो गमणाए। तओ संजयामेव गामाणुगामं । दूइज्जेज्जा।
१३६. साधु-साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए जाने कि आगे लम्बा अटवी मार्ग आने वाला है। वह अटवी मार्ग एक दिन, दो दिन, तीन दिन, चार दिन या पाँच दिनों में पार किया जा सकता है अथवा पार करना अति कठिन है। तो अन्य मार्ग होने पर उसके भयंकर अटवी मार्ग से विहार करके नहीं जाये। केवली भगवान ने इसे कर्मबन्ध का कारण बताया है, क्योंकि) मार्ग में वर्षा हो जाने पर द्वीन्द्रिय आदि जीवों की उत्पत्ति हो । सकती है, लीलन-फूलन, बीज, हरियाली सचित्त पानी और मिट्टी आदि के कारण संयम ,
आचासंग सूत्र (भाग २)
( २३६ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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