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संस्तारक वापस करने सम्बन्धी विवेक
१२२. (१) से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तए । से जं पुण संथारगं जाणेज्जा सअंडं जाव ससंताणगं, तहप्पगारं संथारगं णो पच्चप्पिणेज्जा ।
(२) से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा संथारगं पच्चपिणित्तए । से जं पुण संथारगं जाणेज्जा - अप्पंडं जाव संताणगं, तहप्पगारं संथारगं पडिलेहिय २ पमज्जिय २ आयाविय २ विहुणिय २ ततो संजयामेव पच्चष्पिणेज्जा ।
१२२. (१) साधु-साध्वी यदि (प्रतिहारिक) संस्तारक गृहस्थ को वापस देना चाहे, उस समय यदि वह संस्तारक अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त हो, तो उस प्रकार का संस्तारक गृहस्थ को वापस नहीं लौटाए ।
(२) साधु-साध्वी यदि गृहस्थ को संस्तारक वापस सौंपना चाहे, यदि वह संस्तारक अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हो तो उसका प्रतिलेखन प्रमार्जन करके, उसे धूप देकर यतनापूर्वक झाड़कर दाता गृहस्थ को सौंप देवे ।
PRUDENCE ABOUT RETURNING THE BED
122. (1) When a bhikshu or bhikshuni wants to return the bed to the householder he should find if it is infested with eggs, living beings and cobwebs. If it is so, he should not return it.
(2) When a bhikshu or bhikshuni wants to return the bed to the householder he should find if it is infested with eggs, living beings and cobwebs. If it is not so, he should inspect it, clean it, place it in sun for sometime, blow it clean and then return it to the donor.
उच्चार-प्रस्रवण- प्रतिलेखना विवेक
१२३. से भिक्खू वा २ समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे वा पुव्वामेव पण्णस्स उच्चार- पासवणभूमिं पडिलेहेज्जा केवली बूया आयाणमेयं ।
अपडिलेहियाए उच्चार- पासवणभूमीए, भिक्खू वा २ राओ वा वियाले वा उच्चारपासवणं परिट्ठवेमाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वाहत्थं वा पायं वा जाव लूसेज्जा पाणाणि वा ४ जाव ववरोएज्जा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं पुव्वामेव पण्णस्स उच्चार- पासवणभूमिं पडिलेहेज्जा ।
शय्यैषणा द्वितीय अध्ययन
( २१९ )
Shaiyyaishana: Second Chapter
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