SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ R A . ...... . | शय्यैषणा : द्वितीय अध्ययन | आमुख + द्वितीय अध्ययन का नाम ‘शय्यैषणा' है। + जैन परम्परा में 'शय्या' शब्द कुछ विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त है। यहाँ शय्या का प्रसिद्ध अर्थ बिछौना, गद्दा या सेज ही नहीं है, अपितु सोने-बैठने के लिए पट्टा, चौकी आदि सभी उपकरणों का समावेश 'शय्या' में हो जाता है। + 'एषणा' का अर्थ है-अन्वेषणा। संयमी-साधु के योग्य द्रव्य शय्या के अन्वेषण, ग्रहण और परिभोग के सम्बन्ध में कल्प्य-अकल्प्य का चिन्तन/विवेक करना शय्यैषणा है जिसमें शय्या सम्बन्धी एषणा का निरूपण हो, उस अध्ययन का नाम शय्यैषणा अध्ययन है। जिस प्रकार धर्म साधना के लिए शरीर परिपालनार्थ आहार-पानी की आवश्यकता होती है, वैसे ही शरीर को विश्राम देने, सर्दी-गर्मी रोगादि से उसकी सुरक्षा करके धर्मक्रिया के योग्य रखने हेतु शय्या की आवश्यकता होती है। शय्यैषणा अध्ययन के तीन उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में उपाश्रय से सम्बन्धित उद्गमादि दोषों तथा गृहस्थादि संसक्त उपाश्रय से होने वाली हानियों का विषय है। द्वितीय उद्देशक में उपाश्रय सम्बन्धी विभिन्न दोषों की सम्भावना तथा उससे सम्बन्धित विवेक एवं त्याग का प्रतिपादन है तथा तृतीय उद्देशक में संयमी साधु के सम-विषम स्थान में समभाव रखने का विधान है। ९ शय्यैषणा : द्वितीय अध्ययन ( १५९ ) Shaiyyaishana : Second Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy