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(३) अशस्त्र-परिणत-जिस पर कोई विरोधी शस्त्र नहीं लगा हो, जिस कारण वह सचित्त हो। (४) अधिक उज्झित धर्मी-जिसका अधिक भाग फेंकने लायक हो। (५) वासी, सड़ा, गला, जीवोत्पत्तियुक्त।
जो फल पककर वृक्ष से स्वयं नीचे गिर जाता है या पकने पर तोड़ लिया जाता है या पका लिया जाता है उसे पका कहते हैं। पक्क फल भी जब तक बीज, छिलका या गुठली सहित होता है सचित्त कहलाता है। जब उसे शस्त्र विदारित छेदन-भेदन कर बीज आदि दूर कर या अग्नि संस्कारित किया जाता है तव वह भिन्न अथवा शस्त्र-परिणत कहलाता है। अर्ध-पक्क तथा अर्ध-संस्कारित फल भी सचित्त तथा शस्त्र-अपरिणत होने से मुनि के लिए अग्राह्य कोटि में गिना गया है। (बृहत्कल्पसूत्र, उद्देशक १, सूत्र १-२ की व्याख्या, कल्पसूत्र : मुनि श्री कन्हैयालाल जी 'कमल')
सूत्र ४५ से ५९ तक उस समय में उपयोग में आने वाली या गृहस्थ के घर में सहज उपलब्ध होने वाली वनस्पति आदि की सूचना की गई है। ____ वृत्तिकार ने बताया है-अग्र-बीज का अर्थ है वह वनस्पति जिसके अग्र भाग में बीज होता है अथवा जिसका अग्र भाग बोने पर ही भूमि में उत्पन्न होता है।
सूत्र ५१ में 'महुं वा मज्जं वा' शब्द पर समीक्षा करते हुए आचार्य श्री आत्माराम जी म. लिखते हैं-पुराना मधु, मद्य और घृत नहीं लेना, क्योंकि पुराना होने से उसके रस विचलित होने पर त्रस जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। वैसे मधु और घृत तो मुनि ग्रहण करते हैं, किन्तु इनके साथ 'मद्य' शब्द चिन्तनीय है। क्योंकि साधु के लिए आगमों में सर्वत्र ‘मद्य' और 'माँस' अभक्ष्य
और अग्राह्य बताया है। अतः यहाँ ‘मद्य' का अर्थ शराब या मदिरा नहीं होकर किसी मदकारी वस्तु, जैसे-महुए का फल आदि हो सकता है। (आचारांग, पृ. ८८४) ___Elaboration-The aphorisms 45 to 59 are based mainly on ahimsa. The main source of food is plants. In scriptures plants have been classified into ten main categories—
(1) Mool (root), (2) kand (bulbuous root), (3) skandha (trunk or stem), (4) tvacha (skin or bark), (5) shakha (branch), (6) praval (shoot), (7) patra (leaf), (8) pushp (flower), (9) phal (fruit), and (10) beej (seed).
The acceptability of the eatable parts has been discussed here from the ahimsa angleCATEGORIES
(1) Apakk-raw; for this ‘aam' term has also been used.
(2) Ardh-pakk--half ripe.
पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन
( १११ )
Pindesana : Frist Chapter
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