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________________ " ५४. से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणेज्जा, उप्पलं वा उप्पलणालं वा भिसं वा भिसमुणालं वा पोक्खलं वा पोक्खलथिभगं वा, अण्णयरं वा तहप्पगारं जाव णो पडिगाहेज्जा। ५५. से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणेज्जा, अग्गबीयाणि वा मूलबीयाणि वा खंधबीयाणि वा पोरबीयाणि वा अग्गजायाणि वा मूलजायाणि वा खंधजायाणि वा पोरजायाणि वा णण्णत्थ तक्कलिमत्थएण वा तक्कलिसीसेण वा णालिएरमत्थएण वा खजूरिमत्थएण वा तालमत्थएण वा, अण्णयरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणयं जाव णो पडिगाहेज्जा। ५३. साधु या साध्वी गृहस्थ के घर में भिक्षार्थ प्रवेश करने पर यह जाने कि वहाँ इक्षुखण्ड-गंडेरी है, अंककरेलु, निक्खारक, कसेरू, सिंघाड़ा एवं पूतिआलुक नामक वनस्पति है अथवा अन्य इसी प्रकार की वनस्पतियाँ हैं, जो अपक्व तथा शस्त्र-परिणत नहीं है, तो उसे अप्रासुक और अनेषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। ५४. साधु या साध्वी गृहस्थ के यहाँ भिक्षा के लिए प्रवेश करने पर जाने कि वहाँ नीलकमल आदि या कमल की नाल है, पद्म कन्दमूल है या पद्मकन्द के ऊपर की लता है, पद्मकेसर है तथा इसी प्रकार का अन्य कन्द है, जो कच्चा है, शस्त्र-परिणत नहीं हुआ है तो उसे अप्रासुक जानकर ग्रहण न करे। ५५. साधु या साध्वी गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करने पर जाने कि वहाँ अग्र-बीज वाली, मूल-बीज वाली, स्कन्ध-बीज वाली तथा पर्व-बीज वाली वनस्पति है एवं अग्र-जात, मूल-जात, स्कन्ध-जात तथा पर्व-जात वनस्पति है, (इनमें यह विशेषता है कि ये अग्र, मूल आदि पूर्वोक्त भागों के सिवाय अन्य भाग से उत्पन्न नहीं होतीं) तथा कदली का गूदा (गर्भ), कदली का स्तबक, नारियल का गूदा, खजूर का गूदा, ताड़ का गूदा तथा अन्य इसी प्रकार की कच्ची और शस्त्र-परिणत नहीं हुई वनस्पति है, उसे अप्रासुक और अनेषणीय समझकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। 53. A bhikshu or bhikshuni on entering the house of a layman in order to seek alms should find if he is offered sugar-cane slices, ankakarelu, nikkharak, kaseru (Cyperus esculentus), singhada (Trapa natans), putialuk or other such vegetables that are raw and unmodified. If it is so, he should refrain from taking any such things considering them to be contaminated and unacceptable. पिण्डैपणा : प्रथम अध्ययन ( १०७ ) Pindesana : Frist Chapter t aasikindialini SMSP3.9424 SINESS Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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