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________________ . . ... *i. RSONARANARTeekasi... R-7 संखडि, नौकारोहण, मार्ग में चोर, लुटेरों आदि का उपद्रव, वैराज्य प्रकरण आदि के वर्णन जहाँ श्रमण जीवन में आने वाली कठिनाइयों का रोमांचक दृश्य प्रस्तुत करते हैं। वहाँ उस समय की राजनीतिक व सामाजिक परिस्थितियों पर भी प्रकाश डालते हैं। इस प्रकार यह आगम जहाँ श्रमण की प्राचीन आचार मर्यादा के अध्ययन के लिए पठनीय, मननीय है वहीं प्राचीन भारतीय समाज के सांस्कृतिक स्वरूप की झाँकी पाने के लिए अध्ययन व अनुसंधान की सामग्री प्रस्तुत करता है। प्रस्तुत संपादन ____ मैंने इस आगम में पाठ संशोधन तथा अनुवाद विवेचन में प्राचीन चूर्णि, नियुक्ति व वृत्ति आदि का उपयोग किया है। शुद्ध पाठ के लिए युवाचार्य श्री मधुकर मुनि के निदेशन में श्रीचन्द सुराना द्वारा संपादित आचारांग सूत्र भाग २ का उपयोग किया है। वहीं कठिन शब्दों का अर्थ शब्द-कोष व चूर्णि के आधार पर स्पष्ट किया गया है। प्राचीन अर्थ का अनुसंधान करने में भी चूर्णि का उपयोग किया गया है। जैन-आगमों के सफल हिन्दी व्याख्याकार श्रमणसंघ के प्रथम आचार्यसम्राट् आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का बहुत सुन्दर सटीक विवेचन किया है। अनेक विवादास्पद स्थलों पर उन्होंने आगमों के संदर्भ देकर सत्य का उद्घाटन करते हुए तर्कयुक्त व्याख्या की है। मैंने इस विवेचन में आचार्यश्री की हिन्दी टीका का स्थान-स्थान पर उपयोग किया है। वास्तव में इन्हीं आधार ग्रंथों के बल पर मैं अपने संपादन को अधिक उपयोगी बना सका हूँ। मैं हृदय से उनका आभारी हूँ। ___ मेरे आगम संपादन कार्य के अनन्य सहयोगी श्रीचन्द सुराना 'सरस' ने सदा की भाँति अत्यन्त मनोयोगपूर्वक इसका संपादन तथा भावानुरूप चित्रांकन करवाकर इस रचना की उपयोगिता में चार चाँद लगा दिये हैं। साथ ही अंग्रेजी अनुवादकर्ता श्री सुरेन्द्र बोथरा तथा चित्रकार सरदार पुरुषोत्तमसिंह जी एवं श्री त्रिलोक शर्मा ने चित्रों में भावों को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है। जैनधर्म, दर्शन के विद्वान् व अंग्रेजी भाषाविज्ञ सुश्रावक राजकुमार जी जैन, दिल्ली ने भी सेवाभाव से अपनी महत्त्वपूर्ण सेवाएँ दी हैं। मैं इन सभी के सहयोग के प्रति आभारी हूँ। ___उत्तर भारतीय प्रवर्तक पूज्य गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. की कृपा, आशीर्वाद के कारण मैं अपने श्रुत-सेवा कार्य में निरन्तर आगे बढ़ रहा हूँ और विश्वास है इसी प्रकार आगे श्रुत-सेवा में अपना जीवन सार्थक करता रहूँगा। आदरणीय उपप्रवर्तिनी साध्वी श्री जगदीशमति जी म. की विदुषी शिष्या निर्भीकवक्ता साध्वी श्री सन्तोषकुमारी जी की सप्रेरणा से इसमें सहयोग प्राप्त हुआ है तथा गुरुदेव के अनेक उदार भक्त श्रावकों ने आगम-सेवा की भावना से जो सहयोग किया है मैं उन सबको हृदय से धन्यवाद देता हूँ। -उपप्रवर्तक अमर मुनि 4.... भाभारी हैं। -- - (१० ) tioYOODHODHOOMBODYSPOrderdog TRAORNAD . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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