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जल तीन प्रकार का होता है - ( १ ) सचित्त - जीव सहित । (२) अचित्त - निर्जीव । (३) मिश्र - सजीव-निर्जीव मिश्रित जल | सजीव जल, शस्त्र अर्थात् विरोधी वस्तु के प्रयोग से निर्जीव हो जाता है। जलकाय के शस्त्र इस प्रकार बताये हैं
'उस्सिंचण-गालण-धोवणे य उवगरण मत्तभंडे य।
arrt आउary एयं तु समासओ सत्तं ॥"
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उत्सेचन - कुएँ से बाल्टी आदि द्वारा जल निकालना, गालन -- वस्त्र आदि से जल छानना,
धोवन - जल से उपकरण / बर्तन आदि धोना,
स्वकाय शस्त्र - एक स्थान का जल दूसरे स्थान के जल का शस्त्र है; जैसे- नदी का पानी तालाब के पानी का शस्त्र है।
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( नियुक्ति, गाथा ११३ - ११४)
परकाय शस्त्रत्र-मिट्टी, तेल, क्षार, शर्करा, अग्नि आदि,
तदुभय शस्त्र- स्वकाय परकाय का मिश्रण; जैसे- जल से भीगी मिट्टी आदि जलकाय का शस्त्र है।
भाव शस्त्र - असंयम ।
जलकाय के जीवों की हिंसा को 'अदत्तादान' कहने के पीछे एक महत्त्वपूर्ण कारण है। उस समय परिव्राजक आदि कुछ संन्यासी जल को सजीव तो नहीं मानते थे, किन्तु ( अदत्त जल ) का उपयोग नहीं करते थे। जलाशय आदि के स्वामी की अनुमति लेकर जल का उपयोग करने में वे दोष नहीं मानते थे। उनकी इस धारणा को श्रमणों ने भ्रांतियुक्त बताते हुए तर्क दिया कि जलाशय का स्वामी क्या जलकाय के जीवों का स्वामी हो सकता है ? क्या जल के जीवों ने अपने प्राण हरण करने या प्राण किसी को सौंपने का अधिकार दिया है ? नहीं ! अतः जल के जीवों का प्राण हरण करना हिंसा तो है ही, साथ में उनके प्राणों की चोरी भी है।
Elaboration-Acceptance of water as a living entity or a life-form is an original Jain concept. Bhagavan Mahavir's other contemporary philosophers did not accept water as a life-form, they only accepted the existence of other beings thriving in water. In Taittiriya Aranyak rain (varsha) has been described as womb of water and water has been accepted as having procreative power. Only a living entity is endowed with capacity to procreate; therefore it may be inferred that the concept of water having life has influenced Vedic school of thought also. But besides the Anagar (Jain) philosophy all other schools of
आचारांग सूत्र
( ३८ )
Illustrated Acharanga Sutra
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