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भगवान केवलज्ञान प्राप्त कर तीर्थंकर हो गये तब उनके लिए लोहार्य मुनि गृहस्थों के यहाँ से आहार लाता था, जिसे वे पात्र में लेकर नहीं, हाथ में लेकर करते थे ।
आचार्य श्री आत्माराम जी म. के अनुसार भगवान ने कभी गृहस्थ के पात्र में भोजन नहीं किया। ( आचारांग, पृ. ६७०)
'सोवधिए हु लुप्पती' पद में उपधि के तीन अर्थ होते हैं - ( १ ) शरीर, (२) कर्म, और (३) उपकरण आदि परिग्रह। ये उपधियाँ लुम्पक-संयम जीवन की लुटेरी हैं।
'परिवज्जियाण ओमाणं' पर व्याख्या करते हुए बताया है - जिस भोज में गणना से अधिक खाने वालों की उपस्थिति होने के कारण भोजन कम पड़ जाता है वह अवमान भोज कहा जाता है । दशवैकालिक चूर्णि में भी इसी से मिलता-जुलता अर्थ किया है जहाँ कुछ गिनती के लोगों के लिये भोजन बने, वहाँ से भिक्षा लेने पर अतिथियों के लिए फिर से दूसरा भोजन बनाना पड़े, या फिर उन्हें भोजन के बिना ही भूखा रहना पड़े इन दोषों के कारण अवमान भोज में आहार ग्रहण करना निषिद्ध है। ( दशवैकालिकसूत्र २ / ६ )
कुछ व्याख्याकारों ने ‘ओमाणं' को 'अपमान' शब्द मानकर ' मान-अपमान की परवाह किये' बिना यह अर्थ भी किया है। ( आचार्यनी आत्मा. ६६९ )
अणुतो - शब्द का वृत्तिकार अर्थ करते हैं - अनुचीर्ण-आचरित ।
(१) अन्य तीर्थंकरों के द्वारा आचरित विधि अनुसार आचरण किया ।
(२) दूसरे तीर्थंकरों के मार्ग का अतिक्रमण नहीं किया । अतः यह अन्याऽतिक्रान्त विधि है । भगवान किसी विधि-विधान में पूर्वाग्रह से, निदान से या हठाग्रहपूर्वक बंध कर नहीं चलते थे। वे सापेक्ष अनेकान्तवादी थे । इसकी सूचना 'अपडिण्णेण' शब्द द्वारा की गई है।
॥ प्रथम उद्देशक समाप्त ॥
Elaboration-Aphorisms 266 to 277 detail the ahimsa based disciplined routine of Bhagavan.
Some of Bhagavan Mahavir's contemporary philosophers believed that after death a woman is reborn as a woman only, and a man as a man. Earth-bodied and other immobile beings are reborn as immobile beings only. The mobile beings are reborn in no other genus but that of mobile beings.
As mentioned in Bhagavati Sutra, when Gautam Swami asked, “Bhagavan, has this being been born as other life-forms (earthbodied to mobile being) earlier also?"
आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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