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आहार चर्या २७२. अहाकडं ण से सेवे सव्वसो कम्मुणा य अदक्खू।
जं किंचि पावगं भगवं तं अकुव्वं वियर्ड भुंजित्था॥१८॥ २७२. भगवान ने यह देखा कि आधाकर्म आदि दोषयुक्त आहार लेना सब प्रकार से कर्मबन्ध का कारण है इसलिए उस आहार का सेवन नहीं किया। भगवान आहार से सम्बन्धित कोई भी पाप नहीं करते थे। वे प्रासुक आहार ग्रहण करते थे। FOOD ROUTINE
272. Bhagavan saw that accepting adhakarmi (cooked specifically for an ascetic) or faulty food was in every way a cause of karmic bondage, therefore he did not accept such food. He did not commit any food related sin. He only accepted prasuk food (pure and suitable for an ascetic). उपकरण चर्या २७३. णासेवइय परवत्थं परपाए वि से ण भुंजित्था।
परिवज्जियाण ओमाणं गच्छति संखडिं असरणाए॥१९॥ २७३. (भगवान स्वयं वस्त्र व पात्र नहीं रखते थे इसलिए) दूसरे (गृहस्थ या साधु) के वस्त्र का सेवन नहीं करते थे, दूसरे के पात्र में भोजन नहीं करते थे। वे 'अवमान भोज' तथा जीमनवार आदि में आहार के लिए नहीं जाते थे। EQUIPMENT ROUTINE
273. (As Bhagavan did not have clothing and bowl) he did not use clothing belonging to others (ascetic or householder) and did not eat in a bowl belonging to others. He would not go to a feast nor would he think about delicious food. रस-परित्याग वृत्ति २७४. मायण्णे असणपाणस्स णाणुगिद्धे रसेसु अपडिण्णे।
अच्छिं पि णो पमज्जिया णो वि य कंडुयए मुणी गायं ॥२०॥ २७४. भगवान अशन-पान की मात्रा (परिमाण) को जानते थे, वे न तो रसों में आसक्त थे कोई संकल्प करते थे। आँख में रजकण आदि पड़ जाने पर भी उसका प्रमार्जन नहीं करते थे और शरीर को खुजलाते नहीं थे। आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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