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आचार्य महाप्रज्ञ जी ने अनुधर्मिता का अर्थ किया है-पूर्ववर्ती तीर्थंकरों के आचार का अनुपालन करना। संभव है भगवान पार्श्वनाथ के समय से तीन शाटक, दो शाटक, एक शाटक एवं अचेलक चार परम्पराएँ प्रचलित थीं। भगवान पहले एक शाटक रहे फिर अचेल हो गये यह उनकी अनुधर्मिता है।
पाली शब्द कोष में ‘अनुधम्मता' शब्द मिलता है जिसका अर्थ होता है-धर्मसम्मतता, धर्म के अनुरूप। इस दृष्टि से भी पूर्व तीर्थंकर आचरित धर्म के अनुरूप' अर्थ संगत लगता है। ___ चूर्णिकार ने बताया है भगवान ने उस वस्त्र को एक वर्ष तक यथारूप से धारण करके रखा, हटाया नहीं। अर्थात् तेरहवें महीने तक उनका कन्धा उस वस्त्र से रिक्त नहीं हुआ। क्योंकि सभी तीर्थंकर एक वस्त्र सहित दीक्षा लेते हैं। भगवान ने तो उस वस्त्र का भाव से परित्याग कर दिया था, किन्तु स्थितिकल्प के कारण वह कन्धे पर पड़ा रहा। स्वर्णबालुका नदी के प्रवाह में बहकर आये हुए काँटों में उलझा हुआ देख, पुनः उन्होंने कहा-“वोसिरामि-मैं वस्त्र का व्युत्सर्जन करता हूँ।"
निष्कर्ष यह है कि भगवान पहले एक वस्त्र सहित दीक्षित हुए, फिर निर्वस्त्र हो गये, यह परम्परा के अनुसार किया गया था।
कल्पसूत्र की सुबोधि का टीका तथा महावीर चरियं आदि में वस्त्र-त्याग की घटना के साथ ब्राह्मण को वस्त्र देने का प्रसंग है किन्तु चूर्णि में यह उल्लेख नहीं है।
पाणजाइया-का अर्थ वृत्तिकार और चूर्णिकार दोनों 'भ्रमर आदि' करते हैं। ___ आरुसियाणं-का अर्थ चूर्णिकार करते हैं-'अत्यन्त रुष्ट होकर' तथा वृत्तिकार अर्थ करते हैं-माँस व रक्त के लिए शरीर पर चढ़कर"
Elaboration—During the winter on the Margsheersh Krishna (the moonless or dark fortnight of a month) tenth, Bhagavan Mahavir got initiated. He at once left Kundagram and arrived at Karmar village when it was forty eight minutes to sunset. Explaining the reason for this immediate departure the commentator (Vritti) says—There are increased chances of enhancement of feelings of fondness and love if one remains with his friends and relatives for a longer period. Therefore by following the ideal conduct Bhagavan set an example for the future aspirants taking to the spiritual path.
Eyam khu anudhammiyam tassa—This conduct was in compliance with the doctrine. According to the commentator (Vritti)
this means that wearing the piece of cloth was just an emulation of o आचारांग सूत्र
( 846) Illustrated Acharanga Sutra
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