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छट्टो उद्देसओ
एकवस्त्रधारी श्रमण की समाचारी
२२१. जे भिक्खु एगेण वत्थेण परिवुसिते पायबिइएण, तस्स णो एवं भवइ - बिइयं वत्थं जाइस्सामि ।
षष्ठ उद्देशक
२२२. से अहेसणिज्जं वत्थं जाएज्जा, अहापरिग्गहियं वत्थं धारेज्जा जाव गिम्हे पडिवन्ने अहापरिजुण्णं वत्थं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णं वत्थं परिद्ववेत्ता अदुवा एगसाडे, अदुवा अचेले लाघवियं आगममाणे जाव सम्मत्तमेव समभिजाणिया ।
LESSON SIX
२२१. जो भिक्षु ऐसी प्रतिज्ञा ले चुका है कि एक वस्त्र और दूसरा (एक) पात्र से अधिक नहीं रखूँगा, उसके मन में ऐसा विकल्प नहीं उठता कि मैं दूसरे वस्त्र की याचना करूँगा।
२२२. (यदि उसका वस्त्र अत्यन्त फट गया हो तो) वह अपनी कल्प मर्यादा के अनुसार ग्रहणीय वस्त्र की याचना करे । यहाँ से लेकर आगे 'ग्रीष्म ऋतु आ गई है', तक का वर्णन (चतुर्थ उद्देशक के सूत्र २१४ की तरह) समझ लेना चाहिए ।
भिक्षु यह जाने कि अब ग्रीष्म ऋतु आ गयी है, तब वह उन फटे वस्त्रों का परित्याग करे । (परित्याग करके वह) या तो एक शाटक में ही रहे, अथवा अचेल (वस्त्ररहित ) हो जाये ।
श्रमण के लिए लाघवता श्रेष्ठ है, इस तरह से विचार करे। वस्त्र - विमोक्ष करने वाले मुनि को सहज ही तप - ( उपकरण ऊनोदरी एवं कायक्लेश) प्राप्त होता है।
भगवान ने जिस प्रकार से वस्त्र -विमोक्ष का निरूपण किया है उसी रूप में गहराई से जानकर सब प्रकार से सर्वात्मना समत्व का आचरण करे ।
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THE ROUTINE OF MONO-CLAD ASCETICS
221. An ascetic who has taken a vow of possessing only one piece of cloth and a bowl as the second (possession) does not think that he will beg for a second piece of cloth.
222. (If his cloth is torn) that ascetic should beg for a piece of cloth that is prescribed for him... (from this point to 'summer has set in' the text should be taken same as in aphorism 214).
आचारांग सूत्र
( ४१६ )
Illustrated Acharanga Sutra
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