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(4) The austerity of that state is sanctioned by Jinendra (Tirthankar). ___(5) The discipline of senses in that state is of a very high degree.
Sammattameva samabhijaniya—This phrase conveys that an ascetic should thoroughly know and sincerely follow the code of freedom from possessions or equipment established by Tirthankars and remain equanimous in both the states---clad and unclad. Both these are paths of liberation of soul from the bondage of karmas.
शरीर-विमोक्ष : वैहानसादिमरण ____ २१६. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ ‘पुट्ठो खलु अहमंसि, नालमहमंसि सीतफासं अहियासेत्तए', से वसुमं सव्व-समण्णागयपण्णाणेणं अप्पाणेणं केइ अकरणाए आउट्टे।
तवस्सिणो हु तं सेयं जमेगे विहमाइए। तथाऽवि तस्स कालपरियाए। सेऽवि तत्थ वियंतिकारए। इच्चेतं विमोहायतणं हियं सुहं खमं णिस्सेसं आणुगामियं। त्ति बेमि।
॥ चउत्थो उद्देसओ सम्मत्तो ॥ २१६. जिस भिक्षु को जब ऐसा प्रतीत हो कि मैं (शीतादि परीषहों) को सहन नहीं कर सकता हूँ। तो वह संयम का धनी-(वसुमान्) भिक्षु स्वयं को प्राप्त सम्पूर्ण प्रज्ञान एवं अन्तःकरण (स्व-विवेक) को जागृत करके उस उपसर्ग के वश न होकर संयम में स्थित रहता है। ___ उस तपस्वी भिक्षु के लिए यही श्रेयस्कर है कि स्त्री आदि का उपसर्ग उपस्थित होने पर मरण स्वीकार करे। ऐसा करने पर भी उसका वह मरणकाल-पर्यायमरण कहलाता है। उस मृत्यु से वह भिक्षु अन्तक्रिया करने वाला भी हो सकता है। ___इस प्रकार यह मरण विमोक्ष आयतन (प्राणों की मूर्छा से मुक्ति दिलाने वाला) हितकर, सुखकर, कर्मक्षय में समर्थ, कल्याणकारी तथा परलोक में साथ चलने वाला होता है। ____ -ऐसा मैं कहता हूँ।
विमोक्ष : अष्टम अध्ययन
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Vimoksha : Eight Chapter
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