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। बीओ उद्देसओ
| द्वितीय उद्देशक
LESSON TWO
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अकल्पनीय-विमोक्ष
२०५. से भिक्खू परक्कमेज्ज वा चिटेज्ज वा णिसीएज्ज वा तुयट्टेज्जा वा सुसाणंसि वा सुन्नागारंसि वा रुक्खमूलंसि वा गिरिगुहंसि वा कुंभारायतणंसि वा हुरत्था वा, कहिंचि विहरमाणं तं भिक्खू उवसंकमित्तु गाहावती बूया-आउसंतो समणा ! अहं खलु तव अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारंभ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहटु चेतेमि आवसहं वा समुस्सिणोमि, से भुंजह वसह आउसंतो समणा !
भिक्खू तं गाहावई समणसं सवयसं पडियाइक्खे-आउसंतो गाहावइ ! णो खलु ते वयणं आढामि, णो खलु ते वयणं परिजाणामि, जो तुम मम अट्ठाए असणं वा वत्थं वा पाणाई ४ समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठ अभिहडं आहटु चेएसि; आवसहं वा समुस्सिणासि। से विरतो आउसो गाहावती ! एयस्स अकरणयाए।
२०५. भिक्षु कहीं जा रहा हो, या श्मशान में, सूने मकान में, पर्वत की गुफा में, वृक्ष के नीचे, कुम्भारशाला में अथवा गाँव के बाहर कहीं खड़ा हो, बैठा हो या लेटा हुआ हो अथवा कहीं भी विहार कर रहा हो, उस समय कोई गृहपति (गृहस्थ) उस भिक्षु के पास आकर कहे-"आयुष्मान् श्रमण ! मैं आपके लिए प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों का समारम्भ (उपमर्दन) करके अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कम्बल या पाद-प्रोंछन बना रहा हूँ या आपके उद्देश्य से खरीदकर, उधार लेकर, किसी से छीनकर, दूसरे की वस्तु को उसकी बिना अनुमति के लाकर, या घर से लाकर आपको देना चाहता हूँ अथवा आपके लिए उपाश्रय का निर्माण करवा देता हूँ। हे आयुष्मान् श्रमण ! आप उस (अशन, पान आदि) का उपभोग करें और उस उपाश्रय में रहें।"
उस सुमनस्-(भद्र हृदय) एवं सुवयस-(भद्र वचन वाले) गृहपति को भिक्षु निषेध करता हुआ कहे-“आयुष्मान् गृहपति ! मैं तुम्हारे इस वचन को आदर नहीं देता, तुम्हारे वचन को स्वीकार नहीं करता हूँ; तुम जो प्राणों, भूतों, जीवों और सत्वों का समारम्भ करके मेरे लिए अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कम्बल या पाद-प्रोंछन बनाते हो, या मेरे ही लिए उसे खरीदकर, उधार लेकर, दूसरों से छीनकर, दूसरे तुम्हारे भागीदार की वस्तु उसकी अनुमति के बिना लाकर अथवा अपने घर से यहाँ लाकर मुझे देना चाहते हो, मेरे लिए उपाश्रय का निर्माण करना चाहते हो। हे आयुष्मान् गृहस्थ ! मैं उससे सर्वथा विरत हो चुका हूँ। अतः यह मेरे लिए अकरणीय है (मैं स्वीकार नहीं कर सकता)।" विमोक्ष : अष्टम अध्ययन
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Vimoksha: Eight Chapter
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