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पंचम उद्देसओ
पंचम उद्देशक
LESSON FIVE
[पिछले उद्देशक में भिक्षुओं को तीन प्रकार के गौरव त्यागकर विषय-पिपासा से मुक्त रहते हुए साधना करने का कथन किया गया है। इस उद्देशक में ग्राम-नगरों में विहार करते हुए धर्म सुनने के इच्छुक जनों को तटस्थभावपूर्वक धर्म-कथन का निरूपण है।]
[The preceding lesson talks about doing ascetic practices after abandoning three types of glory and remaining free of mundane desires. This lesson talks about giving religious discourses with equanimity to the eager people while moving around from one village or city to another.] तितिक्षु-धुत का धर्म-कथन
१९७. से गिहेसु वा गिहतरेसु वा गामेसु वा गामंतरेसु वा णगरेसु वा णगरंतरेसु वा जणवएसु वा जणवयंतरेसु वा संतेगतिया जणा लूसगा भवंति अदुवा फासा फुसंति। ते फासे पुट्ठो धीरो अहियासए ओए समियदंसणे। ___दयं लोगस्स जाणित्ता पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं आइक्खे विभए किट्टे वेदवी।
से उट्ठिएसु वा अणुट्टिएसु वा सुस्सूसमाणेसु पवेदए–संतिं विरतिं उवसमं णिव्वाणं सोयवियं अज्जवियं मद्दवियं लाघविय अणइवत्तियं।
सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूयाणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं, अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खेज्जा।
अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खमाणे णो अत्ताणं आसाएज्जा णो परं आसाएज्जा णो अण्णाइं पाणाइं भूयाइं जीवाई सत्ताइं आसाएज्जा।
१९७. वह (श्रमण जब विहार करता है तो-) घरों में, गृहान्तरों में (घरों के बीच), ग्रामों में ग्रामान्तरों (ग्रामों के बीच) नगरों में, नगरान्तरों में, जनपदों में या जनपदान्तरों में कुछ विद्वेषी जन हिंसक-(उपद्रवी) हो जाते हैं। (उपसर्ग करते हैं)। अथवा (सर्दी, गर्मी, डांस, मच्छर आदि परीषहों के) स्पर्श (कष्ट) प्राप्त होते हैं। उनसे स्पृष्ट होने पर धीर मुनि उन सबको समभाव से सहन करे।
जो मुनि राग और द्वेष से रहित एवं सम्यग्दर्शी है वह लोक पर दया/अनुकम्पा भाव के साथ पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण आदि दिशाओं और विदिशाओं में धर्म का उपदेश करे। तत्त्व का विभाग करके, धर्माचरण के सुफल का निरूपण करे। धुत : छठा अध्ययन
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Dhut : Sixth Chapter
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