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पढमो उद्देसओ
प्रथम उद्देशक
LESSON ONE
सम्यग्ज्ञान का कथन
१७८. ओबुज्झमाणे इह माणवेसु आघाइ से णरे। जस्स इमाओ जाइओ सव्वओ सुपडिलेहिआओ भवंति आघाइ से णाणमणेलिस। से किट्टति तेसिं समुट्ठियाणं निक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं। १७८. इस संसार में सम्बुद्ध पुरुष दूसरे मनुष्यों को धर्म का आख्यान (कथन) करता
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जिसको ये समग्र जीव-जातियाँ सब प्रकार से भलीभाँति ज्ञात होती हैं, वही विशिष्ट (असाधारण) ज्ञान का सम्यक् रूप में उपदेश करता है। ___ वह (सम्बुद्ध पुरुष) इस लोक में उन सब के लिए मुक्ति मार्ग का उपदेश करता है, जो धर्माचरण के लिए उद्यत है, मन, वचन और काया से जिन्होंने दण्डरूप हिंसा का त्याग कर दिया है, जो समाहित (एकाग्रचित्त या तप-संयम में उद्यत) हैं तथा सम्यक् ज्ञानवान् हैं। DEFINING RIGHT KNOWLEDGE
178. In this world it is the enlightened man who preaches religion to other people.
Only he who perfectly knows in every way all these life forms, rightly preaches special (uncommon) knowledge. ___He (the enlightened one) shows the path of liberation for all those in this world who are prepared to follow the religious conduct; have renounced violence in the form of torture through mind, speech and body; who are self contained (engrossed in austerities and discipline); and endowed with right knowledge.
विवेचन-'आघाइ से नरे' इस पद के द्वारा शास्त्रकार ने यह संकेत किया है कि धर्म का, ज्ञान का, या मोक्ष-मार्ग विषयक तत्त्व-ज्ञान का प्ररूपण ज्ञानी पुरुष के द्वारा ही किया जाता है, वह अपौरुषेय नहीं होता। चार घातिकर्मों के क्षय हो जाने पर केवलज्ञान से सम्पन्न होकर वे अन्य प्राणियों के हित के लिए धर्म या ज्ञान का प्रतिपादन करते हैं। धुत : छठा अध्ययन
( ३०७ )
Dhut: Sixth Chapter
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