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धुयं : छट्टम अज्झयणं | धुत: छठा अध्ययन
आमुख
+ छठे अध्ययन का नाम है-'धुत अध्ययन'। + 'धुत' शब्द का सामान्य अर्थ है धुला हुआ, शुद्ध तथा निर्मल। वस्त्रादि पर से धूल आदि
झाड़कर उसे निर्मल कर देना द्रव्यधुत कहलाता है। भावधुत वह है, जिसने संयम एवं ध्यान द्वारा अष्टविध कर्मों को धुन डाला हो अथवा कर्मरज से रहित ो गया हो। + धुत अध्ययन का उद्देश्य है-साधक संसारवृक्ष के बीजरूप कर्मों के विभिन्न कारणों को
जानकर उनका परित्याग करे और कर्मों से सर्वथा मुक्त-(अवधूत) बने। + प्राचीन काल में निर्ग्रन्थ परम्परा की भाँति बौद्ध परम्परा में भी 'धुत्त' शब्द प्रचलित था। वहां तेरह धुतों का वर्णन मिलता है।
(विशुद्धि मग्गो) + इस अध्ययन के पाँच उद्देशकों में पाँच प्रकार के धुतों का वर्णन है। + प्रथम उद्देशक में निजकधुत अर्थात् स्वजनों के ममत्व भाव त्याग का वर्णन है। + द्वितीय उद्देशक में कर्मधुत-आठ प्रकार के कर्मों में प्रकम्पन करने का कथन है। + तृतीय उद्देशक में उपकरण-शरीरधुत-अर्थात् उपकरणों एवं शरीर के प्रति ममत्व-त्याग का
प्रतिपादन है। + चौथे उद्देशक में गौरवधुत-ऋद्धि, रस तथा साता-गौरव के त्याग का तथा + पंचम उद्देशक में उपसर्गधुत-अनुकूल-प्रतिकूल परीषहों में तितिक्षा रखने का कथन है। + इस अध्ययन में अनेक प्रचलित शब्दों का नवीन अर्थों में प्रयोग हुआ है। जैसे 'वेयवी'
वेदविद्-वेदों को जानने वाला। उस युग के इस प्रतिष्ठित शब्द को इस अध्ययन में ज्ञानी
और दूसरों की पीड़ा को जानने के अर्थ में प्रयुक्त किया है। इसी प्रकार 'स्थितात्मा', 'दृष्टिमान' आदि अनेक प्रकाशित शब्द नये अर्थों में लक्षित होते हैं।
आचारांग सूत्र
(३०४ )
Illustrated Acharanga Sutra
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