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________________ विवेचन-इस सूत्र में ह्रद (जलाशय) के दृष्टान्त द्वारा आचार्य की विशिष्टता का दर्शन कराया है। वृत्तिकार ने चार प्रकार के ह्रद बताकर विषय का विशद् विवेचन इस प्रकार किया है (१) एक ह्रद ऐसा है, जिसमें से पानी-जल-प्रवाह निकलता है और मिलता भी है। (२) दूसरा ह्रद ऐसा है, जिसमें से जल-स्रोत निकलता है किन्तु मिलता नहीं। (३) तीसरा ह्रद ऐसा है, जिसमें से जल-स्रोत निकलता नहीं, मिलता है। (४) चौथा ह्रद ऐसा है, जिसमें से न जल-स्रोत निकलता है, और न मिलता है। प्रथम भंग में स्थविरकल्पी आचार्य आते हैं, जिनमें दान और आदान (ग्रहण) दोनों होते हैं, वे शास्त्रज्ञान एवं आचार का उपदेश देते भी हैं तथा स्वयं भी ग्रहण एवं आचरण करते हैं। दूसरे भंग में तीर्थंकर आते हैं, जो शास्त्रज्ञान एवं आचार का उपदेश देते तो हैं, किन्तु उन्हें लेने की आवश्यकता नहीं रहती। तृतीय भंग में विशिष्ट साधना करने वाला जिनकल्पी साधु आता है, जो उपदेश आदि देता नहीं किन्तु शास्त्र ज्ञान आदि लेता अवश्य है। चतुर्थ भंग में प्रत्येकबुद्ध आते हैं, जो न ज्ञान देते हैं, न लेते हैं। ____ आचार्य ३६ गुणों, पाँच आचारों, अष्ट सम्पदाओं एवं निर्मल ज्ञान से परिपूर्ण होते हैं। वे दोषरहित सुखविहार योग्य (सम) क्षेत्र में रहते हैं, अथवा ज्ञानादि रत्नत्रय रूप समता की भावभूमि में रहते हैं। उनके कषाय उपशान्त हो चुके हैं या मोह कर्मरज उपशान्त हो गया है, षड्जीवनिकाय के या संघ के संरक्षक हैं, अथवा दूसरों को सदुपदेश देकर नरकादि दुर्गतियों से बचाते हैं, श्रुतज्ञान रूप स्रोत के मध्य में रहते हैं, शास्त्रज्ञान देते हैं, स्वयं लेते भी हैं। ___ चूर्णिकार ने पण्णाणमंता-प्रज्ञावान का अर्थ चौदह पूर्वधारी और पबुद्धा-प्रबुद्ध का अर्थ मनःपर्यवज्ञानी किया है। शास्त्रज्ञान में पारंगत विद्वान् को भी प्रबुद्ध कहते हैं। ___ शास्त्रकार कहते हैं-'सम्ममेयं ति पासहा' मेरे कहने से तू मत मान, अपनी मध्यस्थ व कुशाग्र बुद्धि से स्वतन्त्र, निष्पक्ष चिन्तन द्वारा इसे देख कि जो इन्द्रियों से गुप्त, प्रज्ञावान, प्रबुद्ध और आरम्भ से उपरत महर्षि हैं वे ही आचार्य होते हैं। Elaboration-In this aphorism the qualities of an acharya have been explained with the metaphor of a lake. The commentator (Vritti) has elaborated the subject by mentioning four types of lake2.F. (1) One type of lake is that where there is outflow as well as inflow of water. (2) Second type is that where there is only outflow and no inflow. आचार, श्रुत, शरीर, वचन, वाचना, मति, प्रयोग और संग्रहपरिज्ञा, ये आचार्य की आठ गणि-सम्पदाएँ हैं। -आयारदसा ४, पृ. २१ लोकसार : पंचम अध्ययन ( २८३ ) Lokasara : Fifth Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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