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पुव्वं दंडा पच्छा फासा, पुव्व फासा पच्छा दंडा। इच्चेए कलहा संगकरा भवंति। पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासेवणाए। त्ति बेमि।
१६५. वह प्रभूतदर्शी, प्रभूत परिज्ञानी, उपशान्त, सम्यक् प्रवृत्तियुक्त, ज्ञानादि सहित, सदा यतनाशील या इन्द्रियजयी अप्रमत्त मुनि (ब्रह्मचर्य से विचलित करने के लिए उद्यत-) स्त्रीजन को देखकर अपना पर्यालोचन करता है-'यह स्त्रीजन मेरा क्या कर लेगा?'
लोक में जितनी भी स्त्रियाँ हैं, वे परम आराम (चित्त को मोहित करने वाली) हैं।
ग्रामधर्म-(इन्द्रिय-वासना) से पीड़ित मुनि के लिए तीर्थंकर भगवान ने यह उपदेश दिया है (इन्द्रिय-विजय का उपाय बताया है) कि
वह साररहित-निर्बल आहार करे, ऊनोदरिका करे, ऊर्ध्व स्थान (पाँवों को ऊँचा और सिर को नीचा, अथवा सीधा खड़ा) होकर कायोत्सर्ग करे, ग्रामानुग्राम विहार करे, आहार का त्याग (अनशन) करे, स्त्रियों के प्रति आकृष्ट होने वाले मन को समझाये।
(स्त्री-संग के कारण-) पहले दण्ड मिलता है और पीछे स्पर्श होता है, अथवा कहीं-कहीं पहले स्पर्श मिलता है, बाद में उसका दण्ड मिलता है।
ये काम-भोग कलह-(कषाय) और आसक्ति-(द्वेष और राग) उत्पन्न करने वाले हैं।
स्त्री-संग से होने वाले ऐहिक एवं पारलौकिक दुष्परिणामों को भगवद् वचनों के द्वारा जानकर आत्मा को उनके सेवन से दूर रखे। __-ऐसा मैं कहता हूँ। KNOWING BRAHMACHARYA
165. When that careful and alert ascetic, endowed with mature perception, mature knowledge, calmness, right attitude and (scriptural) knowledge, sees women (bent upon seducing him) he contemplates-“What could these women do to me ?"
All the women in this world are very pleasing (enchanting).
For the ascetic under the influence of village norms (lust og carnal desires) Tirthankar. Bhagavan has said (showing the way of conquering senses) thatआचारांग सूत्र
( २७८ )
Illustrated Acharanga Sutra
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