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________________ PQPQPQPQ AR AQ AQ AQ PAR PAR PAY GA बीओ उद्देसओ अप्रमाद का मार्ग १५३. आवंती केआवंती लोगंसि अणारंभजीवी एतेसु चेव अणारंभजीवी । एत्थोवर तं झोसमाणे अयं संधी ति अदक्खु । जे इमस्स विग्गहस्स अयं खणे त्ति मन्नेसी । एस मग्गे आरिएहिं पवेइए। - उट्ठिए णो पमायए । जाणत् दुक्खं पत्ते सायं । द्वितीय उद्देशक पुढो छंदा इह माणवा । पुढो दुक्खं पवेइयं । से अविहिंसमाणे अणवयमाणे पुट्ठो फासे विप्पणोल्लए । एस समया - परियाए वियाहिये| LESSON TWO १५३. इस लोक में जितने मनुष्य अनारम्भजीवी ( - अहिंसा के आराधक ) हैं वे विषयों से दूर अप्रमत्त रहते हैं, अतः वे अनारंभजीवी कहलाते हैं। जो इस आरम्भ से उपरत है, आरंभ त्याग की साधना करते हुए 'यह सन्धि है' ऐसा उसने देख लिया। इस शरीर का 'यह वर्तमान क्षण है', इस प्रकार जो अन्वेषण (चिन्तन) करता है वह सदा अप्रमत्त रहता है। आर्यों ने यह (अप्रमाद का - ) मार्ग बताया है। मोक्ष साधना में उत्थित होकर प्रमाद न करे । दुःख और सुख प्रत्येक प्राणी का अपना-अपना होता है यह जानकर प्रमाद न करे । इस जगत् में मनुष्य पृथक्-पृथक् अभिप्राय वाले होते हैं, (इसलिए ) उनका दुःख भी पृथक्-पृथक् होता है। ऐसा तीर्थंकरों ने कहा है । Jain Education International वह साधक किसी भी जीव की हिंसा न करे । जीवों के स्वरूप को अन्यथा न कहे ( मृषावाद न बोले ) । परीषहों एवं उपसर्गों के आने पर चंचल न बने, उन्हें समभावपूर्वक सहन करे । वह समता का पारगामी कहलाता है। THE PATH OF ALERTNESS 153. In this world people who are anarambh-jivi (who do not indulge in sinful activities) remain away from mundane लोकसार : पंचम अध्ययन ( २५१ ) Lokasara: Fifth Chapter For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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