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आर्य वचन की यथार्थ कसौटी
१३९. वयं पुण एवमाइक्खामो, एवं भासामो, एवं पण्णवेमो, एवं परूवेमो- 'सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वें जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्जावेयव्वा, ण परिघेयव्वा, ण परियावेयव्वा, ण उद्दवेयव्वा । एत्थ वि जाणह नत्थित्थ दोसो ।' - आरियवयणमेयं ।
१३९. हम (अहिंसावादी ) इस प्रकार कहते हैं, ऐसा ही भाषण करते हैं, ऐसी ही प्रज्ञापना करते हैं, ऐसी ही प्ररूपणा करते हैं - सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों की हिंसा नहीं करना, उनको जबरन शासित नहीं करना, उन्हें पकड़कर दास नहीं बनाना, न ही परिताप देना और न उन्हें भयभीत करके प्राणरहित करना । इस विषय में यह निश्चित जान लो कि अहिंसा का पालन सर्वथा दोषरहित है ।" - यह आर्यवचन है।
THE TRUE YARDSTICK
139. We (the followers of ahimsa ) state, speak, propagate, · and elaborate— “Nothing which breathes, which exists, which lives, and which has any essence or potential of life, should be destroyed or ruled over, or subjugated, or harmed, or deprived of its essence or potential. In this context, know this for sure that there is no fault in following the code of Ahimsa." This is the word of nobles.
१४०. पुव्वं निकाय समयं पत्तेयं पुच्छिस्सामो-हं भो पावाइया ! किं भे सायं दुक्खं उदाहु असायं ?
समिया पडवणे या वि एवं बूया - सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूयाणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं असायं अपरिणिव्वाणं महब्भयं दुक्खं ।
त्ति बेमि ।
॥ बीओ उद्देसओ सम्मत्ती ॥
१४०. पहले हम उनमें से प्रत्येक दार्शनिक को ( जो-जो उसका सिद्धान्त है, उसमें स्थापित कर पूछेंगे - " हे प्रखरवादियो ! आपको दुःख साताकारी ( मन को प्रसन्न करने वाला) है ? या नहीं ?
यदि आप कहें कि "हमें दुःख साताकारी नहीं है, ” तो आपका कथन सम्यक् है । हम आपसे यह कहना चाहते हैं कि “जैसे आपको दुःख प्रिय नहीं है, वैसे ही सभी प्राणी, सम्यक्त्व : चतुर्थ अध्ययन
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Samyaktva: Forth Chapter
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