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इस अध्ययन के चार उद्देशकों में निम्न विषय हैं+ प्रथम उद्देशक में अध्यात्म-साधना की दृष्टि से जागृत और सुप्त की चर्चा है। विशेषतः
अप्रमाद और प्रमाद का, अनासक्ति और आसक्ति का विवेक बतलाया गया है। + द्वितीय उद्देशक में बताया है कि भाव निद्रा में सुप्त व्यक्ति अध्यात्म दृष्टि से शून्य होते हैं, वे
ही दुःख-सुख का अनुभव करते हैं तथा भाव दृष्टि से जागृत साधक द्रव्य दृष्टि से सुप्त रहकर भी जागृत है। + तृतीय उद्देशक में साधक का कर्तव्यबोध निर्दिष्ट है कि केवल कष्ट सहने मात्र से कोई
श्रमण नहीं होता। चौथे उद्देशक में कषायादि से विरति का उपदेश दिया है। सुप्त और जागृत की चर्चा के साथ इस अध्ययन का आरम्भ होता है। शरीर के लिए सोने का भी महत्त्व है और जागने का भी। अध्यात्म की दृष्टि से केवल जागरण का ही महत्त्व है। दर्शनमोहनीय कर्म का उदय महानिद्रा है, जो इसको उपशान्त या क्षय कर देता है, वह सदा
जागृत रहता है। + इस प्रकार चारों उद्देशकों में आत्मा के परिणामों में होने वाली भाव-शीतलता और ___ भाव-उष्णता को लक्ष्य कर अनेक विषयों की चर्चा की गई है।
a शीतोष्णीय : तृतीय अध्ययन
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Sheetoshniya : Third Chapter
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