________________
काम-निवृत्त हो जाता है। और-“काम नियत्तमई खलु संसारा मुच्चई खिप्पं।"-१७७ काम-निवृत्त साधक संसार से शीघ्र ही मुक्त हो जाता है।
सार रूप में कहा जा सकता है प्रथम अध्ययन में अहिंसा का मुख्य विषय रहा है तो द्वितीय अध्ययन में अपरिग्रह या अनासक्ति पर मुख्य बल दिया गया है।
इस अध्ययन के छह उद्देशकों में (नियुक्ति गाथा १७२ के अनुसार) क्रमशः निम्न विषयों का 'उद्बोधन है। १. स्वजन आदि में आसक्ति नहीं करे। २. संयम में अरति अर्थात् उदासीनता या शिथिलता त्यागे। ३. गोत्र, जाति आदि का मद तथा हीन जाति का शोक न करे। ४. भोगों में आसक्ति नहीं रखे। ५. संयम-यात्रा के निर्विघ्न निर्वाह के लिए लोकनिश्रा में विहार करे। ६. सर्वत्र ममत्वभाव का त्याग करते हुए विचरे।
लोक-विजय : द्वितीय अध्ययन
(
७९
)
Lok Vijaya : Second Chapter
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org