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________________ बीअं अज्झयणं दूसरा अध्याय सारांश जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं का दास है, उनकी पूर्ति करने में लगा हुआ है वह व्यक्ति संसार में कदम-कदम पर दुःखी होता रहता है। वह संसार का दास बनता है और संसार की ठोकरे खाता रहता है। इसलिये अगर साधना के मार्ग पर चलना है तो उसे अपनी इच्छापूर्ति की आशा को छोड़ना ही होगा। और उसे आवश्यक है कि हर तरह से अपने मन की भावनाओं की चंचलता और शरीर की सुकुमारता को छोड़े। जिसके पास छोड़ने को कुछ नहीं उसे महावीर त्यागी नहीं कहते । साधना की दृष्टि से वह त्यागी नहीं है। त्यागी वह है जो प्राप्त सुखसुविधाओं को छोड़कर सत्य की प्राप्ति के लिये साधना के मार्ग पर निकल पड़ता है। वही सही अर्थ में साधक है। सामण्णपुव्वयं कहं नु कुज्जा सामण्णं जो कामे न निवारए। पए पए विसीयंतो संकप्पस्स वसंगओ ।। १ ।। वत्थगन्धमलंकार इत्थो सयणाणि य। अच्छन्दा जे न भुंजन्ति न से चाइ त्ति वुच्चइ ।। २ ।। जे य कन्ते पिए भोए लद्धे विपिटिकुव्वई। साहीणे चयइ भे से हु चाइ त्ति वुच्चइ ।। ३ ।। समाए पेहाए परिव्वयंतो सिया मणो निस्सरई वहिद्धा। न सा महं नोवि अहं पि तीसे इच्चेव ताओ विणएज्ज रागं ।। ४ ।। SAMARPAN- DEDICATION 23
SR No.007629
Book TitleSamarpan Dedication Badi Diksha of Sadhvi Sanghmitraji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJAINA Education Committee
PublisherVeerayatan
Publication Year2012
Total Pages50
LanguageEnglish, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_English
File Size3 MB
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