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बड़ि दीक्षा क्या है ?
आचार्य श्री माँ चन्दनाश्रीजी संसार में अगर किसी को कोई रोककर रखता है तो वे दो चीजें हैं - या तो व्यक्तिगत संबंध की पकड़ या तो वस्तुगत संबंध की पकड़ । जब व्यक्ति दीक्षित हो जाता है तो दोनों संबंध छोड़ देता है। इस अनुपम स्वतंत्रता का अनुभव नहीं कर सकता साधक, जब तक सर्वसंग त्यागी नहीं होता। इसलिये गृहस्थ जीवन के बाद दीक्षित जीवन का अनुभव काफी अलग ही
होता है। इस वातावरण में ४-६ महिने रहने के बाद साधक अपने जीवन की दीक्षा का निर्णय करता है। छोटी दीक्षा और बड़ी दीक्षा के बीच के इस समय में इस मार्ग के प्रति मन की दृढ़ता का श्रद्धा और संकल्प का ठीक से आकलन (evaluate) करता है । और जिनमार्ग को अनुसरण करने का चुनाव करता है। जीवन को ज्ञान भक्ति और साधना के मार्ग पर सुस्थित करने की गुरू से आज्ञा मांगता है। यह दृढ़ निर्णय और इस मार्ग पर गुरू की आज्ञा में संकल्प पूर्वक चलने की स्वीकृति ही बड़ी दीक्षा है।
SAMARPAN- DEDICATION