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Ends
भवजलहि । सासयसुह संपत्तु ३० श्रीमहावीरस्तोत्रं समाप्तम् ।। दशवैकालिकसूत्रम्-मागधी ..........
पाक्षिकसूत्रम् .................. १७१ । पारिठासंठिअण-सुयणरयणा वा .........
यशोदेवसूरिः | २५९ / ९३२-३९ | १२८९
उद्योतनसूरिBegins
शिष्यः-मुनिचंद्रनमह नयनमिर नरवइसरसिरुहवियासणम् ।।
धर्मसहोदरः भुवणपणयं नियतमतिमिरनियर वीरजिणदिसरं सिरसा ||१|| --- इय नमिउं वीरजिणं थोउण सरस्स ईच भावेणम् ।।
भवियजण बोहणत्थं उवएसं किंचि वोछामि || ३ ॥ Endsइइ वलिक्वारेणं कन्वकरणणि जायवसणेणम् ॥ एसा कहिया रइया तेणय णोणुसरणथम् ।। २० ॥
पारिठासंठिए संमत्ता वड्डावल्लीपुरीए एसा फग्गुणचउमासे पज्जुन्न सूरिणो धम्मनत्तुएणं तु सुयणुसारेण गणिणा जसदेवेणं उद्धरिया एत्थ पढमयई २३ पूजाविधानं समाप्तमिति ॥
संवत् १२८९ ।। १७२ | पाण्डवचरित्रम्-एकादशसर्गात्
२३४ | ... | ... | ... | Endsविहिरेफार्पितमहिममहाकाव्यमेतद्धिनोतु ॥ २८ ॥ इति मल्लधारिश्रीदेवप्रभसूरिविरचिते पांडवचरित्रष्टादशः सर्गः ॥