________________
धर्मदासगणिः | २५३
५।
५०
... |
मू० नमिण सयलगुणगणरयणकुलहा विमलकेवलं वीरम् ।। धम्मरयणत्थियाण जणाण वियरेमि उवएसम् ॥१॥ मू० तेसि इमो भावत्यो नियमइविहवाणुसारभणिर्ड || सपराणुग्गहहे उ समासः संत सूरीहिम् || ४३ ॥ ----चिठति सही सुहं पत्ता ॥ १८ ॥ टी. निर्वाणसुखप्रांतिरिति ।। इति श्रीधर्मरत्नवृत्तिः समाप्ता ||
---धर्मरत्नप्राप्तिर्जगतोपि तेनास्तु ॥ १२ ॥ ९००० ८६ | उपदेशमाला
-थिरावलिया Begins,
जय जगजीवजोणी वियाणर्ड जगगुरू जगाणंदो ।
जगणाहो जगबंधू जयइ जगपिआमहो भयवम् ||१॥ Ends जेअंते भगवते कालियसुय आणुगिए धीरे ॥ ते पणमिउण सिरसा नाणस्स परूवणं वोच्छम् ।। ५० ॥ एवं थिरावलिया सम्मना । -एक्कवीसठाणा ....... -संग्रहणिः Begins
नमिउण -प्रतिक्रमणसूत्रम् Beging| वंदित्तु सब्वसिद्धे
( 61 )
सिद्धसेनदिवाकरः