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रचिता सितपटगुरुणा विमला विमलेन रत्नमालेव ।। प्रभोत्तरमालेयं कंठगता कंन भूषयति ॥ २९ ॥ समाप्ता चेयं प्रभोत्तररत्नमाला || -धर्मलक्षणम् -कल्याणिकस्तवनम् -अजितशान्तिस्तवः -वहरसामिसिद्धिप्रकरणम्-मागधी-गद्यबद्धम् Beging| अहु जणनि सुणेज्ज हो कत्र धरेज्ज हो वहरसामि मुणिवरचरिर्ड ।। Ends
लइय दिख्ख गुणवतिए || वहरसामिसिद्धिप्रकरण समाप्तम् || -वइरसामिचरियम् |Begins
कडविहि दसेहिवि पढमसंधि---उज्जयणिनयर विहरत्तु वरीस हु गणहकगुणमहं तु ॥ Endsमुणिवरवरदिति जिणवरभति वदरतामि गणहर चरिर्ड साहिज्जर्ड भावि मुव्वग्गपाविजि [जं] तिहुयणु गुणभरिउ॥ वहरसामिचरितं समाप्तम् || -चउसरणम् ....
वीरभद्रसाधुः । ... Begius|| अहं नमः॥ सावज्जजोगविरई १उक्वित्तण २ गुणवउअपडिवत्नी३ ॥ खलिअस्स निंदणा १ वणतिगिछ ५ गुणधारणा चेव ॥१॥
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