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|Beging| संसयतिमिर......जीवदयापगरणं वोछम् ॥ २॥ Ends
अवरह पडिक्वाहि ॥ ११॥ जीवदयाप्रकरणं समाप्तम् ।। -धर्मोपदेशमाला-मागधी. | Beginsसिज्मउ मज्झवि सुयएवि तुज्झ भरणाउ सुंदरा ज्झत्ति।
धम्मोवएसमाल विमलगुणा जयपडायच ।। २॥ Ends - माला उवएसाणं एवं जो पढइ भावइर्ड कंठे ।।
सो पावइ निव्वाणं अचिरेण विमाणवासं च ।। १०४ ।। -देवइचरियम्. Begins--
नमिउण चरणजयलं नेमिजिर्णिदस्स लोगनाहस्स ।। देवयसुयाणुचरियं नामग्गहणं पवख्खामि ॥१॥ Endsइय देवमुरिचरियं जो पढइ सुणइ भावए निचम् ।। सो पावइ परमफलं किं बहुणा एत्थ भणिएणम् ।। १००।। सिरि अंगारे जालिं एहिं जो मन्नइ उवयारु । खंतिप्रभावि मुख्खि गर्ड राणउ गयसुकुमालु ।। १०१ ॥ देवइचरियं सम्मत्तम् ।। -क्षेत्रसमासः-मागधी Begins
नामउण सजलजलहरनिभस्स गं वद्धमाणजिणवसभम् ॥ | समयखेत्तसमास वोछामि गुरूवएसेणम् ॥ ३॥
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