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________________ विपय और प्रनादि पत्राक विषय और मननादि पत्राक (२ उद्गा पूर्ण अशा) एव शनिलाप नीललच्या कापोतलेवया को पाके | नारकी नारकी में उपजै के शुनारकी नारकी मे कापोत तेजालन्या को पाके नेजालेश्या पन्ना उपजे एव वैमानिक पर्यत कहा, नारकी नारकी लेल्या को पाके पदालेच्या शक्ललेश्या को पाके से निकल के शनारकी से , एव वैमानिक पर्यत तपादिपणे परिणम इत्यादि सदृष्टान्त ५२३ जोतिषी वैमानिक मे चयन्ति ऐसा कहना ५१३ / कृघ्नलेश्या कैसी यण से, जीमून शुजन खजन कालशी नारकी कजलंगी नारकी मे उपजै इ| कालादि सदृग है| ५२५ त्यादि निणय यावत् शुकलेशी शुक्ललेशी मे नीललेल्या वर्ण निरूपण, कापात लेश्यादि वर्ण उपजे एव २१ दफक मे यथोचित कहना ५१४ निरुपण ५२६ (३ उद्देशा पूर्ण जाथा) एव शास्वाद निमपण ब लेश्या का | परिणाम गध इत्यादि गाथा ५२१ तीन लेश्या दुरनिगन्ध और तीन सुरनि गन्ध ब लेश्या कही ५२२ है, एव शुधागुष्ठ, एव प्रशस्ता प्रशम्न, सक्ति | कृघतलच्या नीललेश्या को पाके तद्वर्ण तद्रूप तद्ग प्टासक्लिष्ट, ठौर स्पर्श, सुगनि दगातगामा न्धादि पणे परिणमे ५२२, कही है । कृतलंध्या ३।९।२७१८१।१२।।
SR No.007380
Book TitleAgam 24 to 33 Das Prakirnak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1886
Total Pages388
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Conduct
File Size8 MB
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