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________________ विपय और प्रनादि पत्राक विपय और प्रश्नादि पनाक कहा। पाच प्रकारे गतिप्रपात कहा प्रयोगगति | नारको सर्व समाहार समशरीर समुत्स्वासनिश्वास आदि के भेद स । प्रयोगगति १५ भदे जैसे हैं इत्यादि १८५ प्रयोग कहा तैसे यह भी कहनी। जीयो को नारकी सर्व समफर्म हैं इति वक्तव्यता । नारकी प्रयोगगति पनरह भदे है। नारकी का ११ सर्व समापपत्रक हैं १८६ प्रकार है एव वैमानिक पयन्त ४७१ | नारकी सर्व समपर्णहै इत्यादि जैसे वर्णकहा तैसे जीयो को क्या सत्यमनप्रयोगगति यावत् क्या ___लेश्या, वेदना , समक्रिय है ४८७ फार्मणशरीरकायप्रयोगगति है याद्वैमानिक नारकी सर्व समायु समोपपन्नकहै इत्यादि निर्ण| पयन्त कहा । एवं गति भेद वक्तध्यता| ४७५ __ य थसुरकुमारतक १८८ (१६ वा प्रयोग पद कहा) यसुरकुमार सर्य समर्म इत्यादि एव स्तनित कुमार पर्यन्त कहा ॥ १७ वा पद कहते हैं। पूधियीकाय थाहार वर्ण कर्म थोर लेश्यासे जैसे __नारकी कहा | आहारसमसरीरा यह अर्थ सग्रह गाथा । १८४ | एव चौरिद्रिय , पचेन्द्रिय तिर्यच जैसे नारकी १८९
SR No.007380
Book TitleAgam 24 to 33 Das Prakirnak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1886
Total Pages388
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Conduct
File Size8 MB
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