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________________ ४४ * रायपणी । घटावलि २ महुरमणहर सुभकत दरिसिणिज्भ गिउणोचिय मिसिमिसन्त रयगृघटिया जाला परिखित्त जोयण सयसहस्सा वित्थि दिव्वगमणसज्झ सिग्घगमण दिव्व जाण विभाग विउ वेद २ता खिप्पामेव एवमाणत्तिय पच्चपिणादि तणस ग्राभि उगिदेवे सुरियाभेण देवेण एववत्तेत्तमाणं जावहियर करयल परिग्गहिए जावपडिसुणे जावपडिमुणेत्ता उत्तर पुरत्थिमदिसीभाग अवक्कत्ति अ च्चेडव्वियसमुग्धारण समोहणइत्ता सखज्झाइ जोयणोइ जावअहावावरेपोग्गले परिसाडेत्ति अहावाहरत्ता ग्रहा रूपाणि रूपकाणि यत्र तत (सश्रीकरूपघण्टावलि बलिय मजुरमणहर सर) मिति घटाव लेघ गटात ेatnaशेन चलिताया कम्पिताया मधुरस्तोव प्रियो मनोहरीमनोनिवृत्तिकर स्वरोयल तत्तथा aferदस्य विशेष्यात्परनिपात' प्राकृतत्वात्, शुभ यथोदित वा सुलक्षणीयैतत्वात कान्त कमनीय श्रतएव दर्शनीय, तथा ( निऊयोविवियमिसिमिसतमणिरयण घण्टिया जालपरिखिच) मिति निपुणमिति निपुणक्रियमोवियत्तिपचितानिमिसिमिसतत्ति देदीप्यमानानि मणिरत्नानि यव घण्टिकाजाले तत्तया तेन घटिकाजालेन क्षुद्रघण्टिकसमूहेन परिसामस्त्येन चिप्प व्याप्त यत्तत्तथा । योजन शतसहस्रविस्तीर्ण योजनलचविस्तार दिव्य प्रधान गमनसद्य गमनमवण शीघ्रगमननामधेय (जाय विभाग )न्ति यानरूप वादनरूप विमान वानविमान शेप प्राग्वत् । ( तस्सा) मित्यादि तरसण रूप तेइसरीसहितइत्यर्थ किरणनासहस्रकरीसोभउ रुपनइनहसकरीकलिकयुक अतिसय करीदेदीप्यमान अतिशयकरीदेपवानद्वयोगितापयोथकीनेवर आलिपनलेत उजयनथी कोमल फरिसछद्र जेहन सोभाकरीसहितरूपकइजेहनद्र घटानीथे विवाइकरीलजावीते इथकीउपनड मधुरश्रीब्रमइआल्हादकारीमनोहरमनन इसुखकारीवर जेहनदूविषद्र वास्तव्य थलचणइम हितक वाकवायोग्यछद्र देखवायोग्यछद्र डाहीरपणइनीपनाव विनयोग्य देदीप्यमान मणिरत्नतीन गम्ही घटिका वेहनुनाल समूहतेयइपरिचिप्तव्याप्तसङ्क योजन लच विस्तारपणद्र प्रधानवालवाद्यर्थइ मद्यatus सीघ्रग मनएहवड कइजेहन देवसवधी वाहनरूप विमानप्रति विकुव्वनीपजीव उ विकुर्वी तत्कालि निश्चय एव अज्ञासुञनडऊपरावीसुपु तिहारपछीतेह सेवक देवता सुयाभद्र देव एकहि हपसतोषपाम् चित्तमाहिचाटु बिछुद्रहाककरीनीपजावीप्रदक्षणारूप अञ्जलीमस्तकए सूर्याभनुवचनसाभल वचनमाभलीन उत्तर पूर्ववचद्र इसानकूणि भाग जादू जन बैंकियसमुद्घात करीवैक्रिसमुद्घातकर करीनद्र सख्याता जीयनलाइ पूर्वनीपरि
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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