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________________ रायपसेणी। २४३ पझवनाणे केवल नाणे सेकित अभिणियोहियणाणे चउविहे पण ते तजहा उग्गहे ईहा अवाए धारणा मेकितं उगृहे२ दुविहे पएणते जहा नदीए जावसेतं धारणा सेत भाभियवोह नाणिण सकि तमुयनाणार दुविद पपणत्त अगपविट्ठ च अगवाहिरच सव्व भाणियन्व जावदिदिव्वाउ उहि नाण मेकित मुयखयोवसमियच जहा नदिए मा पभाव नाणे दुविहे पण्णत्ते तजहा उज्झम त्तीय तहेवकेवल नाण सव्व साणियव्व एत्यण नसे आमिण वोहिय नापा सेणा मम अत्यि तत्वणं जेमे उहिनाणे सेवियसम अत्यि तत्वण जेसेक वल नाणे सेणं मम नत्यिसैण अरहताण भगवताण इव्वएण पदेसी महतव चउबिहेण छाउमस्येण नागो ण मेयारुव अमात्यय जाव समुप्पन जाणामि पासामि तएण तदर्थगत सहतविशेषालोचनमीडा प्रक्रान्तार्थविशेष स निश्चयोऽपाय | अवगतार्थ विशेषण धारण धारणा । सेकित उगाहे इत्यादि यथा नन्दी ज्ञानप्ररूपणाकृता तथावापि परिपूणाकतव्या छउकचउबासै विहाकारि कहिउ पाचारागते ग्यारह अगते अगप्रतिष्टा उत्तराध्ययनादिक ते पंगाद्या प्रकीयादिक सर्वकहिउ जिहालगिक दृष्टिवादपूर्वए श्रुतनानवी हवा अवधि मानविप्रकार जपउ पनिसरिसद तिहा लग रहा ह मनुष्यनद अनद तिर्य च न हुई तिम नदीमूविकहिउ छ तिमनायबु भानावरणायक मनद क्षय अनद उपसमयनद योगद ऊपजद तेवापसमिकत अवधि मानवीजूकहीजे अवधि जानतिभवप्रत्यय अवधिनानते देव अनदूनार कीन पासिहूजिम निमनदीसूबाइ इवथुमनपर्यत्र ज्ञान चिहूप्रकारद कहिउते कहद छद्र जुमनी १ विपुलमती २ तेमाहिचजुमती अढाइ अंगुलद उकज अढाइभापदेय विपुलमतिते पूर्ण अढाइ झापमाहि सजिपा पचेन्द्रियनु मनोगत भावजागद केवलसाही भेदवर्जित सकललोका लोक प्रकासकजानते कैवलजान सर्व कहिद् इहा पाच ज्ञान माहिजमविज्ञान तेह माहरउ कडू जिहां जेते श्रुतज्ञान तेहापणि माहर छह जिहा तेजे अवधिज्ञान तेहपणि माहर कर निहा तजेमनपर्यवज्ञान तेही पणि मायर छह जिहा जेते केवलजान तेह माइरउ नधी तह परिहत नई दूदू पण हेप्रदेसी इताहरू चिहप्रकार छनस्थपासइपामी इते बीज स्थीका जानतेणकरी एह पान्मानद विषद सकल्प सलूजडू अपनु पज्झवासन्न एहचुवितितजाणु वसेषपद देपबु सामान्यपणे तिहारपछी प्रदेसीराजा कैसीकुमार श्रमणन एमबील्यु भगवन दहा तुम्हारर पास बरस बलतागुरुकाइ र मदेसी तुमारी जपोताना उद्यानभूमिना विपद तुमाजमिन -
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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