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________________ गवः भावात रोमादिबाधायां पगचापयन्गेभरोतिएगा साधारणपत्याधितोमा वा पर्यायन्दिमा पुन शब्द पूर्वोका पेचा उत्तरवाक्याच स्व विशेपभोतनार्थ एवे वेगानमा जनेभ्यो पपरे भयं रोशि महारो नामवियमेवविद्या RKICI छेदेद्दश्ता जस्पतिएको एपग्गभावो जाव रामकुमाराहित्ता परिमेहि उमासियोमासेहि भगत गप्तर निघावाय नगर कति परिम्प केवलवराम उप्पाडिति सपच्छामिति जाप चतकर विति एकच्चापूण २ केभ येतास पुनकम्मा समे कानमा काल किया सोममि महाविमा देवता वत्तारो भव । आवग्रन्थीपनरायोपवेशदपचारा सिमकरोन पारतिर नस्त्रपषु धत्रमप्रमायपितवस्त्रादिकगपशपहिर पामोन परिमलहम वापस वापरो धर्मोपताना पतप्रधान कहोमोतोमा दिपक निराकरणचायकले पाया जानो मतिपूर्ण पूर्वि मानापमानीपर के मनपू व मान विशेष प्राचिवाब औरत सामान्यमा विराम कोते उप्पा डिति सपासप तिवारी मोरकपनपनाम प्रापयोग सकनदु मागेरियमानसौको अंतरवर वनो में इनह एक पर्चाशरीरवरिकरसंसारनेविये हवा मनाकर पारायनापहारा पूर्वमत ना खपायक मंत्रयान मे अवशेववाजता कम वोगे कालमा मे मरपालन पवमाधम रचकरोग उत्पयेत्र पुत्र मर्यादि मनिष इसे महामोट प्रोषि मानापातितापयदपचे उपपातमभामतिपत
SR No.007378
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1896
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size9 MB
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