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________________ مصر मानप्रासतमा प्रधान न विद्यते अतिवर वध्यात्तदमतिवर मिति वा सोग्य मोरोग चार शोभन रूप यासां ता तवा दिवसर सजोम्बकास तलवभ्रभाव स्वगयाधी मिरुपहतं रोगादिना भवाधित सरसं हाररसोपेत निपातो वा खोरसो वव तत्तथाविधं योवन तथा कई यो पश्चमा तवाय वयोमान साहा त चोपयता वा स्वा तथा इह च योवनतदभावयोर्यथप्पे श्रावंता तथापि सरसवासवान स्वचयोन शरीरा श्रितयो' प्रधानतमा विवचितयोयो राधारतया भेन विवद्यया पोरामिति' नियमवडियावा 'न सरां प्रावन्तीत्ययं सब्बंग दरोन्ति इयमेवमपिवमहिय वेसा | इष्टवसामरवादिरूपने पवस्त्र रचिनेन रचनेन रतिदोवा पतएव रमबोयो पोत भातो वेष पाशतिविशेषो माभिप्ता तथा बिन्तीति तथवावं हा हार पाउ तर वासुक्त गहे मयि त्रास व जल सुप्तग पोरितिय गट्ट गएमा वसिक ठसत्तम गडगघरको वेव सोपिसुतगतिलग युगसहनिय वासिस सिस्रत सभचव यमसभंग मतयित्वमासयहरिस के जरवत यपाल व मुझे जगवत कछदो पारमावि याच॑क्ष्म्रमाविया चिमेहता सावपयरम परिहरन पायना वधं टिया सिसिखिरय बीर जाखखुट्टियवरने तरच सपमाथिया । कलन विगत आठ ग मगर मुद्द विषायमाराने बरपचवि सहास भूस बधरोहति (हारादीनि मकरमविराजमानम् पुरातानि प्रचवितानि सन्ति सहावन्ति यादवन्ति यानि भूषपानि तानि धारयन्ति या हा तवा तर हारो पादमसरिक पहारी नवकरिक पाठत्तति यानि मादित्ययुक्तानि खकुण्डखानि मतोतानि अथवा प्रयुक्तरत्नकुण्डलानि प्रयुक्तरवानि यानि कुच्छ ठानि तानि तथा तथा व्यामुलवानि परिक्षितानि प्रसम्बितानि वा यानि हेमजालादोमोति क वैवच चलत धारय त प्रेमजाल सच्छिद्र सुसारविशेष एवं मणिप्राथमपि कनक बारहेमजासयो भाकारतो विशेष स च कट्टिगम्य सूचक उरितिपत्तिउरसि भिक तिसरकं कटधानि कहचामि पट्ट गति पोषक विशेष एकावली नानामपित्रमयी माता कण्ठसूत्र गताव
SR No.007378
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1896
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size9 MB
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