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________________ न्तरेषुजीविस्मरन्ति जीवितस्योत्यावदूव जीवितोत्सावः सएवजीवितोत्साविक: हृदयानन्दजननः उदुम्बरपुष्प लभ्य भवति अत स्तेनोपमानं जावतावचम्ह जीवामोत्ति इहभुंच्वतावद्भोगान् यावद्वयंजीवामः इत्येतावतैय विवचितसिद्धौ यत्पुनस्तावच्छन्दस्योच्चा रपुप्फंबदुल्लहेसवण्याए किमंगपुणपासण्याएणोखलुलयात्रम्हद्वेच्छामोखणमवि विष्पओ सहित भुं जाहितावजायांविपुले माणुस्सर कामभोगेजावताववयंजीवामो तत्रोपच्छा म्हेहिंका लगए खोतेजीवनो वासिक वलीहेपुत्रतु' केहबोले माहराहीयाने हर्षनोउपजावणहार के वली हे पुत्रऊ' बरवृचना फूलनीपरे दुर्लभदोहि लोछेएतलेऊ'बरटक्षनोफुलवणुसूक्ष्मडवे परंवाहिरको देखेनहौं तिमताहरीवातसाभल वेकरीदोन्हिलीनोनिषेधखलुनिश्चयात 'हेपुत्रअम्हे इकु'छु' वक्कुक्कु नहींक्षणएकपिणवियोगविरहसहीनसकी ये एतावताताहरोविरहक्षणएकसहिया अम्ह वांछतानी कारण कोहातु' भोगवितिहां लगीहेजात हे पुत्र विपुलषणा मनुष्यसम्बन्धीया कामभोगप्रते जिहांलगी अमेजीकुंकु तिहांलगी हां ग्टहस्थावासमध्य रहो तिवारपछी अम्हे कालकीधापके हेपुत्रतु' पिण नवयौवनयांभीपक परिपक्वयथयोथको दृद्धिमतेपमाय थके KEE
SR No.007376
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1909
Total Pages1487
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size50 MB
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