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________________ इसलिये जैन समाज हम को गुरु मानकर पगे लागना करें-इत्यादि । श्रोसवालों से दाफत करने पर वे कहते हैं कि सेवग लोग हमारे मंगते.( मांगनेवाले ) हैं और हमारे घरों में ढोलियों व नाइयों की मुश्राफिक कमीनपने के काम करते हैं-इत्यादि । इन दोनों की मान्यतामें जमीन आकाश सा अन्तर है जिसके निर्णय के लिये मैंने दो वर्ष तक खूब परिश्रम के साथ अभ्यास किया, प्रोचीन इतिहोस और ग्रन्थोंद्वारा जो कुछ पत्ता मिला वह मैं पब्लिक के सामने पेश कर देता हूँ कि वे सत्यासत्य का निर्णय स्वयं करलें। विक्रम पूर्व ४०० वर्ष की घटना है कि पार्श्वनाथ प्रभुके छठे पट्टधर आचार्य, श्री रत्नप्रभसूरिने मरुधर में पदार्पण कर उपकेशपुरनगर ( ओशियों ) में राजा उत्पलदेवादि राजपूतों ब्राह्मणो और वैश्य वर्ण के ३८४००० कुटम्बों को जैन धर्मकी शिक्षा-दिक्षा दे उन की शुद्धि कर जैन बनाये और उन जनसमूह को समभावी बना के प्रेमरूपी सूत्र में संकलित ऋषभदेव स्वामि का पिता नाभिराजा नृप । दादा अग्नीन्दा भूप जम्बुद्वीप जाने हैं ॥ ताके निज भ्रात शाकद्वीप राज भोगे तहाँ। भेगा तिथि नाम को पुराण सब माने हैं ॥ जाके गुरु मग विप्र भोजक कहलाते सो। गुरु सप्त भ्रातन के हृदयभाव ठाने हैं। जैन धर्मवालों के ऋषभादि तीर्थकर । पूर्ण भगवान् पद्य आदउँका माने हैं ॥ . . (देखो पत्रिका नं० १) १. देखो पत्रिका नम्बर ३. कमीनाने के काम की विस्तृत सूची।
SR No.007300
Book TitleLo Isko Bbhi Padh Lo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Mahatma
PublisherRishabhdas Mahatma
Publication Year1940
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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