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वालों की बैदरकारी का ही फल है चौर चोरी कर माल ले जाता है इस में चौरों की बजाय घरधणी (साहुकार) की ही बेदरकारी है, क्यों कि चोरों को जान लेने पर भी साहुकार घोर निद्रा में पड़ा रहता है । यह ही हाल हमारे ओसवालों का हो रहा है। यदि ओसवालों को पुछा जाय कि आप जैन धर्मोपासक है, आप के राखी बन्धन से क्या सम्बन्ध है ? सेवगों से तिलक करवाते हैं इस का क्या अर्थ हैं। सेवगों को पगे लागना करते हो इस का क्या रहस्य है ? मंगलिक प्रसंग पर 'तीन तेरह तेतीसा' का छप्पया सुनने का क्या मतलब है ? विधर्मी अनार्य भाटों से जैन मन्दिर पूजा के घोर आशातना क्यों करवाते हो ? इन सब का उत्तर में सिवाय 'गाडरिया प्रवाह' के ओर कोई अर्थ ही नहीं निकलता है।
कवि तेज लिखता है कि सेवग वेदपाठी है पर आज पर्यन्त इन सेवगों में ऐसी कोई व्यक्ति नहीं कि जिसने संस्कृत, प्राकृत या अन्य किसी भाषा में जनोपयोगी ग्रन्थ की रचना की हो जैसे कि भारतीय ब्राह्मणोंने साहित्य की सेवा कर यश कमाया । जिन्होंने न्याय, काव्य, तर्क, छन्द, अलंकार, ज्योतिष, वैद्यक आदि अनेक विषयों पर ग्रन्थों की रचना की
और करते हैं । सेवग लोगोंने एक “चाहाड" नामक कवि को अपनी समाज का विद्वान कवि बतलाया हैं जिस की एक कविता यहां उधृत कर के पाठकों को बतला देना हम उचित समझते हैं।
सताँइस साँत आँठ अठारा तीसी । छ छ छंतीस तीन तेरह तेतीसौं ।