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________________ २३ करते आये और आज भी क्यों करते हो ? क्या ऐसे हलके काम करनेवालो को ओसवाल कभी गुरु माना या मानेगा ? कभी नहीं । ओसवालोंने तो यह शब्द ही अब सुना है नहीं तो उसी समय कान पकड़के निकाल देते । याद राखियें ओसवालों के घरों में इतनी पोल नहीं है कि वे मंगतो को गुरु मान लें । ( ७ ) ओशियों में राजपूत थे और तुम उनके पुरोहित थे तब तो अन्य प्रान्तों में रहनेवाले तुमारे भाई मगविप्र अन्य राजपूतों के भी पुरोहित रहे होंगे। जब ओशियों के राजपूत जैनी बन गये और तुम उनके वहाँ भोजन करने से भोजग तथा उनकी सेवा करने से सेवग बन गये । बतलाइये अन्य प्रान्तों में रहनेवाले तुमारे भाई किस पंक्ति में मिले और उनके साथ तुमारा कैसा सम्बन्ध रहा ? तुम ओसवालों की चाकरी कर या उनके वहाँ कच्ची रसोई जीम कर भ्रष्ट हो गये तो तुम्हारे अन्य प्रान्त में बसनेवाले मगविप्र तुमको न्यात बहार कर दिये या वह भी तुमारे सामिल मिल भ्रष्ट हो गये ? सेवगो अब तुमारी मनःकल्पित गप्पे मानने को और तो क्या पर तुमारे शाकद्वीपी समझदार लोग भी तैयार नही हैं । (८) भोजको ! यदि तुम ओसवालों के गुरु ही थे तो बतलावो धर्मगुरु थे या कुलगुरु ? क्योंकि ओसवालों के धर्मगुरु तो कनक, कामिनी के अर्थात् संसार के त्यागी है वह तो तुम बन ही नहीं सकते हों। दूसरा कुलगुरु भी तुम नहीं बन सकों कारण ओसवालों का कुल जैन है और तुम्हारा कुल ब्राह्मण है । जैनियो के जन्म से मरण पर्यन्त सोलह संस्कार व प्रतिष्ठादि धर्मकार्य और उनकी वंशावली वगैरह लिखना जैन निगमबादियों के अधिकार में था । आज
SR No.007300
Book TitleLo Isko Bbhi Padh Lo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Mahatma
PublisherRishabhdas Mahatma
Publication Year1940
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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