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यशे, अने सम्यक्त्व तो तेमां होयज क्याथी ? श्रर्थात् नज होय. तेना घरना अधिष्ठायिक देवो तेने मूकी जशे, श्रने तेजीव मिथ्याष्टि, अनंत संसारी, पुराचारी तथा कदाग्रही जाणवो, केमके एम कस्या थकी देव, गुरु तथा धर्मनी मोटी आशातना थाय बे, ते वात था ग्रंथ वांचवा थकी विवेकी जनोना ध्यानमा तरत आवशे.
वली हालमां विषम कालने विषेधूम्रकेतु ग्रहना प्रजाव थकी अत्यंत जम बुछिने धारण करनारा जिनप्रतिमाना रेषी . वली थावी रीते प्रतिकूलपणे प्रवृत्ति करनारा लोको एम कहे ले के गुंबडा फूट्यानी माफक अथवा अन्य को शरीरमां विकार थाय तेनी पेरे शतुवंती स्त्रीने श्रमक. वाथी कांश पण अशुचिपणुं प्राप्त यतुं नथी, कारण के शरीरनी मांहेली कोरे पण अशुचि जरेलीज , एवं तेनं बोलवं अयोग्य बे; कारण के गुबमा विगेरे जे फूटे ने तेने पण असकाश् श्रीगणांग प्रमुख सूत्रने विषे कहेलीज , अने शरीरनी श्रत्यंतर जे अशुचि कहेवाय डे, ते तो शरीर उपरथी मोहनो परित्याग करवाने अर्थे लावनारूप