________________
(३४)
- अणुवरयं ॥ गिददेव य मुच्चंति, तं गेदं
जे न वऊंति ॥२॥ अर्थः-तेनी लक्ष्मी पूर नासी जाय तथा रोग आतंक विषम अनिवारक थाय, अधिष्ठायिक देव तेनुं घर मूकी जता रहे. ए रीते थानमटवालानुं घर जे नथी मूकतो, तेने पूर्वोक्त वानां थाय ॥॥ जइ कहवि अणानोगे, पुरिसे वि य बिवर निय महिलाए ॥ एहायस्स होइ सुझी, श्य नणियं सबलोएसु॥३॥
अर्थः-जो कदाचित् अजाणतो थको कोइ पुरुष ते स्त्रीने स्पर्श करे तो स्नान करवाथी शुक्षि थाय ए वात सर्व लोक मांहे कहेली ॥३॥
विदि जिणनवणे गमणं, घर पमिमापूअणं च सज्छायं ॥ पुप्फवश्श्बीणं, पडिसिई पुवसूरीहिं॥४॥
अर्थः-विधिपूर्वक जिनजवनने विषेजावं, घरमां देवपूजा करवी अने खाध्याय करवो, एटलां वानां पुष्पवती स्त्रीने पूर्वसूरिए निषेध्यां डे ॥४॥