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________________ ७२ , है वचनका ठिकाना ? | ऊपरकी पांचों कार्डियों में भिन्न २ कारण दिखलाए हैं । अब इनमेंसे सच्चा कारण कौनसा मानना ? । वास्तव में देखा जाय तो, गोशालेको बचाने में उपर्युक्त कारणोंमेंसे एक भी कारण नहीं है, गोशालेको बचाने में जो कुछ कारण था, वह 'अनुकंपा' ही था । और यह कारण स्वयं भगवान् ने श्रीमुखसे फरमा ही दिया है । यदि उपर्युक्त कारणों में से कोई एक कारण होता, तो भगवान् वही कारण दिखलाते । . इसके सिवाय १४ व कडीमें गौतमस्वामी और आनंद श्रावकका जो प्रसंग उपस्थित किया है, वह भी अप्रासंगिक ही है । क्योंकिं - गौतमस्वामीकी भूल तो स्वयं भगवानने दिखलाई है, और 6 मिच्छामि दुक्कडं ' दिलवाया, ऐसा लिखा हुआ मिलता है । परन्तु गोशाले को बचानेसे ' भगवान चूके ' अथवा 'चूकनेसे मिच्छामि दुक्कडं दिया ' ऐसा किसी सूत्र में लिखा हुआ नहीं मिलता, तो फिर भगवान् और गौतमस्वामीका साम्य क्योंकर किया जा सकता है ? । तेरापंथीलोग, अभी तक इस बात को समझे ही नहीं है किभगवान्की छद्मस्थ और केवली दोनों अवस्थाओं की निर्दोष ही करणी होती है। और भगवान् वही कार्य करते हैं, जिसमें गुण देखते हैं | अकार्यको कभी भगवान् करते ही नहीं । जब ऐसा ही नियम है, तो फिर तेरापंथी बतावें कि - भगवान् के किये हुए इस कार्य को अकार्य कैसे कहते हो ? । अगर यह कहो कि - ' भगवान् में इस कार्यके समय सरागसंयम था, इस लिये भगवान् चूके' | तो यह भी ठीक नहीं है | हमने मान लिया कि भगवान् में सरागसंयम था, परन्तु इससे भी इस कार्य में ' चूके ' नहीं कह सकते हैं । क्योंकि - यद्यपि भगवान् सरागसंयमी थे, तो भी राग-लेश्या "
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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