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है। अकस्मात् वह लडका हाथों से गिरगया, और मरभी गया । भव बतलाईये, उस मनुष्यको क्या सरकार फांसी देगी ? कभी नहीं । फांसीतो क्या, किसी प्रकारकी शिक्षा भी नहीं करेगी । बल्कि सरकार उसको दिलासा देगी। क्योंकि-उसका इरादा, लडकेको मारनेका था ही नहीं। यदि इरादे पूर्वक लडकेको मारता तो जरूर फांसीका हुकम होता ।
बस, इसी तरह जिसका इरादा जीवोंके बचाने का है, उसको जीवोंके बचाने का ही फल मिलेगा । न कि-जीव बच करके पाप कार्य करेंगे, उसका । जीव बच करके चाहे सो कार्य करें, इससे बचानेवालेको क्या ताल्लुक ?।
प्रियपाठक, तेरापंथी जीवको बचानेमें जो पाप समझ बैठे हैं, इसका यही कारण है कि-" वे समझते हैं कि, अगर मरते हुए जीवको बचायेंगे, तो बचनेके बाद वह जीव, जो संसारमें पाप करेगा, उन पापोंकी माला हमारे गलेमें आ पडेगी ।" बडी भारी फिलॉसोफी निकाली । जो कार्य, तुम न करोगे, न कराओगे और न अनुमोदन भी करोगे, तो फिर उसका फल तुम्हें आकर कैसे चिपक जायगा ?। क्या · कृतका नाश, और अकृतका आगम' तुम्हारे धर्मप्रवर्तक भिखुनजीने दिखलाया है ? । यदि यही तुम्हारी फिलॉसोफी है, तो मरते हुए तुम्हारे साधुको भी न बचाना चाहिये । क्योंकि -वह जीएगा तो खायगा, टट्टी जायगा इत्यादि कार्यों को करेगा, तो उसका पाप बचानेवालेको लग जायगा। वैसे मरते हुए माता या पिताको भी न बचाने चाहिये। क्योंकि वे जीएंगे तो संसारमें अनेक प्रकारके आरंभ-समारंभ के कार्योंको करेंगे, विषय सेवन करेंगे, लडके-लडकियोंको पैदा करेंगे, ये सब पाप, बचानेवालेको लगेंगे । अच्छा, इतना