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________________ कहा:- द्रव्यसे नहा नोंसे मृषावाद । तब, उसन जो भावओ । तत्थ कोइ कहिंवि हिंसुजओ भणइ इओ तए पसुमिणाइणो दित्ति ? । सो दयाए दिहावि भणइ ण दिहात्त । एस दरओ मुसावाओ, नो भावऔ। ( श्रीहरिभद्रसूरिकृत टीका पृष्ठ १९०) अर्थात्-दूसरे महाव्रतकी द्रव्यादि चतुर्भगी दिखलाते हुए कहाः-१ द्रव्यसे मृषावाद, लेकिन भावसे नहीं । २ भावसे मृषावाद, किन्तु द्रव्यसे नहीं । ३ द्रव्य और भाव दोनोंसे मषावाद । ४ द्रव्यसे और भाव दोनोंसे मषावाद नहीं। यहाँपर कोई हिंसक यह कहे कि-आपने मृगादि पशु देखे ?। तब, उसने देखे हों, तो भी दयासे यही कहे कि मैंने नहीं देखे । यह द्रव्यसे मृषावाद है, भावसे नहीं। इसपरसे भी स्पष्ट सिद्ध हुआ कि-दयाके कारणसे साधु मृषावाद भी बोले, तो वह दोषके लिये नहीं है। और ऐसे प्रसंगोंपर मृषावाद बोलनेकी आज्ञा होनेके कारण हीसे भगवान्ने पन्नवणासूत्रके ग्यारहवें पदमें चार प्रकारकी भाषा बोलते हुए भी 'आराधक' कहा । देखिये, पन्नवणासूत्रक ३८८ वें पत्रमें इस प्रकारका पाठ है:___“कतिणं भंते ! भासज्जाया पण्णत्ता ? गोयमा! चत्तारि भासज्जाया पण्णत्ता । तं जहा-सचमेगं भासज्जायं, बीयं मोसं भासज्जायं, तइयं सच्चामोसं भासज्जायं, चउत्थं असच्चामोसं भासज्जातं । इच्चेयाई भंते! चत्तारि भासजायाई भासमाणे किं आराहए विराहए ?। गोयमा ! इच्चेयाई भासज्जायाई आउत्तं भासमाणे आराहए, नो विराहए।" अर्थात-हे भगवन् ! भाषा कितने प्रकारकी है ? । हे गौतम! भाषा चार प्रकारकी हैः-१ सत्यभाषा, २ मृषाभाषा, ३ सत्या
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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