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________________ वा छोय मुख्यामेव आज वा जा ऐसे ही एक और पाठको भी देखिये । आचारांगसूत्र, द्वितीय श्रुतस्कंधके दूसरे अध्ययनके तीसरे उद्देशेके, पृष्ठ २४७ में इस प्रकारका पाठ है:--- '" से भिक्स्व वा भिक्षुणी वा ऊससमाणे वा णीससमाणे वा कासमाणे वा छीयमाणे वा जंभायमाणे वा उड्डोए वा वातणिसग्गे वा करेमाणे पुवामेव आसयं वा पोसयं वा पाणिणा परिपिहित्ता तओ संजयामेव ऊससेज वा जाव वायणिसग्गं वा करेजा।" . अर्थात्:-साधु, साध्वी, संथारा करनेके बाद श्वासोच्छ्वास लेते हुए, खांसी लेते हुए, छींकते हुए, बगासा खाते हुए, उद्गार करते हुए, अथवा वातोत्सर्ग करते हुए, मुख और अधिष्ठानको अपने हाथसे ढांककर, वे कार्य यतना पूर्वक करे । इससे भी स्पष्ट जाहिर होता है कि मुहपाजी, बांधनेके लिये नहीं है । क्योंकि-देखिये, उपर्युक्त प्रसंगपर यदि मुहपत्ती बांधी हुई होती, तो हाथसे मुंह ढकनेको कहते ही क्यों ! । अच्छा, एक और प्रसंगको भी देखिये । जिस समय हरिकेशी मुनि, यज्ञ करनेवाले ब्राह्मणोंके पास गये, उस समय, ब्राह्मण आपको देखकर इस प्रकार निंदायुक्त वचन बोले:" कयरे आगच्छई दित्तख्वे काले विगराले पोकनासे । उमचेलए पसुपिसायभूए संकरदूसं परिहरिय कंठे" ॥६॥ .... ( उत्तराध्ययन, अ-१२, पृष्ठ-३५१) १ राजकोटके प्रीन्टींग प्रेसमें छपा, जिसका भाषान्तर प्रो. रवजी देवराजादिने किया है।
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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